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________________ अलङ्कार-धारणा का विकास [ ३०१ : (३) गुण-धारणा से निःसृत : स्वभावोक्ति, अत्युक्ति, भाविक तथा अवसर (एक भेद) अलङ्कारों का मूल गुणधारणा में है । अग्निपुराणकार ने प्रशस्ति, कान्ति, औचित्य, संक्षेप और यावदर्थता की गणना अलङ्कार के रूप में कर ली है । भोज ने इन्हें गुण माना था | औचित्य को वस्तुतः न तो गुण माना जा सकता है, न अलङ्कार । वह गुण, अलङ्कार आदि का प्राणभूत काव्य का स्वतन्त्र ही तत्त्व है । (४) नाट्य-क्षेत्र से अलङ्कार के क्षेत्र में अवतरित : - मुद्रा की कल्पना नाटक-तत्त्व के आधार पर की गयी है । प्रक्ष्यत्व को भी कुछ आचार्यों ने अलङ्कार मान लिया है । यह उचित नहीं । प्रक्ष्यत्व नाटक का आवश्यक धर्म है, जिसके अभाव में रूपक की रचना का उद्देश्य ही विफल हो जाता है । (५) अन्य काव्य-तत्त्वों से आविर्भूत :- - श्रव्यत्व, अध्येयत्व आदि काव्य के सामान्य धर्म की गणना भी काव्यालङ्कार के रूप में कर ली गयी है; किन्तु इस कल्पना को अधिकांश आलङ्कारिकों ने स्वीकार नहीं किया है । (६) दर्शन के क्षेत्र से काव्यालङ्कार के क्षेत्र में अवतरित : स्मरण, प्रत्यक्ष, अनुमान आदि छह प्रमाण, वितर्क, अर्थापत्ति, विकल्प तथा उक्ति के विधि नियम और परिसंख्या भेद की धारणा दर्शन से ली गयी है और इन्हें कुछ आलङ्कारिकों ने अलङ्कार के रूप में परिगणित कर लिया है । (७) अलङ्कार-1 र - विशेष से सूक्ष्म भेद के आधार पर कल्पित स्वतन्त्र अलङ्कार :- - अलङ्कार - शास्त्र के परवर्ती काल के आचार्यों में भेदीकरण की प्रवृत्ति अधिक होने से थोड़े-थोड़े भेद के आधार पर स्वतन्त्र अलङ्कारों की कल्पना की जाने लगी । इस प्रकार किसी पूर्व प्रतिपादित अलङ्कार से ही दूसरे अलङ्कार का जन्म हुआ । इस वर्ग के अलङ्कार हैं: - अनुप्रास, अनन्वय, उपमेयोपमा, उत्प्र ेक्षा, आवृत्ति, चित्र, पूर्व, प्रतीप, उभयन्यास, साम्य, अतिशय -- वर्गगत पूर्वं तद्गुण का एक भेद, व्याघात, अहेतु, मालादीपक, उल्लेख, सम्भावना, विषादन, प्रतीपोपमा, भाविकच्छवि, अनुगुण, परिकराङकुर, विकस्वर, असम्भव, प्रौढोक्ति, निश्चय, प्रतिषेध, विधि, छेकोक्ति, व्याजनिन्दा, प्रस्तुताङ, कुर, गूढोक्ति तथा युक्ति । (८) अलङ्कार - विशेष के विपरीत स्वभाव : – सामान्य, अतद्गुण, उन्मीलित तथा अल्प आदि इस वर्ग में आते हैं । इनके स्वरूप की कल्पना
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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