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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
के ही मतानुसार है। जयदेव की अलङ्कार-धारणा के विवेचन-क्रम में हमने जिन अलङ्कारों के स्रोत का परीक्षण किया है, उनके नाम-रूप को अप्पय्य दीक्षित ने यथावत् स्वीकार कर लिया है। उनके अतिरिक्त 'कुवलयानन्द' में कुछ अन्य अलङ्कारों का भी लक्षण-निरूपण किया गया है, जो कुछ विद्वानों के अनुसार जयदेव के 'चन्द्रालोक से ही लिये गये हैं तथा कुछ के अनुसार अप्पय्य के द्वारा उद्भावित हैं । वे अलङ्कार हैं :-प्रस्तुताङ कुर, व्याजनिन्दा, अल्प, मिथ्याध्यवसिति, ललित, अनुज्ञा, मुद्रा, रत्नावली, विशेषक, गूढोक्ति, विवृतोक्ति, युक्ति, लोकोक्ति, निरुक्ति, प्रतिषेध, और विधि ।
मालादीपक हेतु, सूक्ष्म और लेश के लक्षण और व्यपदेश प्राचीन ही हैं ।
प्रस्तुताङ कुर
प्रस्तुताङ कुर की कल्पना अप्रस्तुतप्रशंसा के स्वरूप के आधार पर की गयी है। प्राचीन आचार्यों ने अप्रस्तुत के वर्णन से प्रस्तुत का बोध कराने में अप्रस्तुतप्रशंसा का सद्भाव माना था। अप्पय्य ने प्रस्तुत के वर्णन से प्रस्तुत के द्योतन में प्रस्तुत अलङ्कार की कल्पना की है । ' एक के वर्णन से अन्य के द्योतन की धारणा प्राचीन आचार्यों से ही ली गयी है। व्याजनिन्दा
व्याजनिन्दा नामक नवीन अलङ्कार का स्वरूप बहुत-कुछ व्याजस्तुति नामक प्राचीन अलङ्कार से मिलता-जुलता है। व्याजस्तुति में निन्दामुखेन स्तुति अथवा स्तुतिमुखेन निन्दा के कथन की कल्पना की गयी थी। अप्पय्य ने निन्दामुखेन निन्दा की व्यञ्जना में व्याजनिन्दा-नामक नूतन अलङ्कार की कल्पना की है।
अल्प
अल्प के स्वरूप की कल्पना अधिक के वैपरीत्य के आधार पर की गयी है। अधिक में पृथुल आधेय से आधार का या पृथु आधार से आधेय का
१. प्रस्तुतेन प्रस्तुतस्यद्योतने प्रस्तुताङ्करः।-अप्पय्य, कुवलयानन्द, ६७ २. निन्दाया निन्दया व्यक्तिर्व्याजनिन्देति गीयते।-अप्पय्य, कुवलयानन्द,७२