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अलङ्कार- धारणा : विकास और विश्लेषण
किया है वहाँ केशव ने केवल आठ शब्दालङ्कारों एवं चौदह अर्थालङ्कारों का ही विवेचन किया है । काव्य-गुण-धारणा के परीक्षण क्रम में भी हम यह देख चुके हैं कि केशव मिश्र की प्रवृत्ति काव्यतत्त्व - विवेचन में संक्षेपीकरण की ओर थी।' अलङ्कारों की संख्या की परिमिति भी उनकी इसी प्रवृत्ति की परिणति है ।
केशव मिश्र ने अर्थालङ्कारों की संख्या को जितना कम किया है, उस अनुपात में शब्दालङ्कारों की संख्या को कम करने का प्रयास नहीं किया है । उनके शब्द और अर्थ के अलङ्कार निम्नलिखित हैं:
शब्दा नङ्कार - चित्र, वक्रोक्ति, अनुप्रास, गूढ, श्लेष, प्रहेलिका, प्रश्नोत्तर तथा यमक । २
अर्थालङ्कारर - उपमा, रूपक, उत्प्र ेक्षा, समासोक्ति, अपह्न ुति, समाहित, स्वभाव या स्वभावोक्ति, विरोध, सार, दीपक, सहोक्ति, अन्यदेशत्व या असङ्गति, विशेषोक्ति तथा विभावना | 3
उक्त अलङ्कारों के अतिरिक्त जितने अलङ्कार पूर्वाचार्यों के द्वारा कल्पित थे, उन्हें केशव ने अमान्य बताया है । अन्य अलङ्कारों की सत्ता के अपलाप में कोई सबल युक्ति नहीं । इस मान्यता के औचित्य की परीक्षा का प्रसङ्ग यहाँ नहीं । हमें प्रस्तुत सन्दर्भ में केशव के अलङ्कारों की स्वरूप कल्पना के स्रोत पर ही विचार करना है ।
वक्रोक्ति को केशव ने शब्दालङ्कार माना है । संस्कृत - अलङ्कार - शास्त्र में वक्रोक्ति के शब्दालङ्कारत्व के सम्बन्ध में दो मत रहे हैं । केशव ने मम्मट आदि के मत का अनुसरण करते हुए उसे शब्दालङ्कार-वर्ग में रखा है ।
मम्मट आदि आचार्यों ने प्रश्नोत्तर को अर्थालङ्कार माना था । केशव ने प्रश्नोत्तर को भी शब्दालङ्कार माना है । गूढ़ और प्रहेलिका का पृथक्-पृथक्
१. द्रष्टव्य - लेखक का 'काव्यगुणों का शास्त्रीय विवेचन'
२. चित्रवक्रोक्त्यनुप्रासगूढश्लेषप्रहेलिकाः ।
प्रश्नोत्तरं च यमकमष्टालंकृतयो ध्वनौ ॥ - केशव, अलं० शे०, १०, १
३. उपमारूपकोत्प्र ेक्षाः समासोक्तिरपह्न ुतिः ।
समाहितं स्वभावश्च विरोधः सारदीपकौ ॥ सहोक्तिरन्यदेशत्वं विशेषोक्तिविभावना ।
एवं स्युरर्थालङ्काराश्चतुर्दश न चापरे ॥ - वही, ११, १-२
४. मम्मट विश्वनाथ आदि ने उसे शब्दालङ्कार माना है; पर रुय्यक आदि ने अर्थालङ्कार ।