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________________ २८० ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण पर बल दिया है।' आपाततः यह लक्षण कुछ नवीन जान पड़ता है, पर तत्त्वतः रुय्यक के सहोक्ति-लक्षण से अभिन्न है । यद्यपि रुय्यक ने सहोक्ति के लक्षण-सूत्र में अतिशयोक्तिमूलकता का उल्लेख नहीं किया था, तथापि 'अलङ्कार-सर्वस्व' में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि उसके मूल में अतिशय की धारणा रहती है । निष्कर्षतः, विद्यानाथ की रचना में किसी नवीन अलङ्कार की उद्भावना नहीं हुई है। विद्याधर ने भी 'एकावली' में अलङ्कारों का विवेचन विद्यानाथ की ही तरह मम्मट एवं रुय्यक के मतानुसार किया है। उन्होंने समुच्चय के अङ्ग के रूप में तत्कर का उल्लेख किया है । यह स्वतन्त्र अलङ्कार न होकर समुच्चय का ही अङ्ग है। वाग्मट (द्वितीय) ___ वाग्भट ( द्वितीय ) ने 'काव्यानुशासन' में सूत्र-शैली में अलङ्कारों का स्वरूप-निरूपण किया है। उन्होंने अन्य तथा अपर; इन दो नवीन अलङ्कारों का विवेचन किया है। उनके अनुसार प्रभावशाली वस्तुओं तथा विभिन्न परिस्थितियों का एकत्र निबन्धन अन्य अलङ्कार है। गुण और क्रिया का एक साथ कथन अपर-नामक अलङ्कार का लक्षण माना गया है। कन्हैया लाल पोद्दार ने उक्त अलङ्कारों के सम्बन्ध में यह मान्यता प्रकट की है कि 'वास्तव में अन्य तुल्ययोगिता के और अपर समुच्चय के अन्तर्गत है।'४ १. सहार्थेनान्वयो यत्र भवेदतिशयोक्तितः । कल्पितौपम्यपर्यन्ता सा सहोक्तिरितीष्यते ॥ -विद्यानाथ, प्रतापरुद्रयशोभूषणं, अर्थालङ्कार प्रकरण, पृ० ४०० २. तत्रापि नियमेनातिशयोक्तिमूलत्वमस्याः । -रुय्यक, अलङ्कारसर्वस्व, पृ० ८६ ३. एकेन क्रियमाणं यत्रान्यः स्पर्धयैव तत्कुरुते । ___ सोऽपि समुच्चयभेदः कथितोऽन्यस्तस्करो द्वधम् ॥ -विद्याधर, एकावली, पृ० १५० ४. कन्हैयालाल पोद्दार-काव्यकल्पद्र म, भाग २, भूमिका, पृ० २१
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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