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________________ अलङ्कार-धारणा का विकास [ २७५ (६३) अतद्गुण, (६४) सूक्ष्म, (६५) व्याजोक्ति, (६६) स्वभावोक्ति, (६७) भाविक, (६८) उदात्त, (६९) रसवत्, ( ७० ) प्र ेय, (७१) ऊर्जस्वी, ( ७२ ) समाहित, (७३) भावोदय, (७४) भाव - सन्धि, (७५) भाव - शबलता, (७६) संसृष्टि, तथा (७७) सङ्कर । विश्वनाथ ने कुछ पूर्ववर्ती आचार्यों के द्वारा शब्दगत अलङ्कार रूप में स्वीकृत प्रहेलिका के अलङ्कारत्व का खण्डन किया है । पूर्वाचार्यों ने भी उसे क्रीड़ामात्रोपयोगी कहा था । २ बौद्धिक चमत्कार पर आधृत प्रहेलिका के अलङ्कारत्व की रसवादी आचार्यों के द्वारा अस्वीकृति स्वाभाविक ही है । विश्वनाथ के द्वारा निरूपित शब्दालङ्कारों में पुनरुक्तवदाभास, अनुप्रास, यमक, वक्रोक्ति, श्लेष तथा चित्र अलङ्कारों का सामान्य स्वरूप प्राचीन आचार्यों के अलङ्कारों के स्वरूप से अभिन्न है । अनुप्रास के पूर्वाचार्यों के द्वारा स्वीकृत छेक, वृत्ति तथा लाट-भेदों के साथ श्र ुति तथा अन्त्य भेदों की भी गणना विश्वनाथ ने की है । श्रत्यनुप्रास की धारणा नवीन नहीं है । आचार्य दण्डी ने माधुर्य-गुण-विवेचन-प्रसङ्ग में श्रत्यनुप्रास के जिस लक्षण की कल्पना की थी, उसे ही विश्वनाथ ने स्वीकार किया है । अन्त्यानुप्रास की कल्पना आचार्य दण्डी के पादान्त यमक की कल्पना पर आधृत है । 3 विश्वनाथ ने भाषासम - नामक स्वतन्त्र शब्दालङ्कार का अस्तित्व स्वीकार किया है । इस की स्वरूप - कल्पना के मूल में संस्कृत, प्राकृत आदि अनेक भाषाओं की एकत्र घटना की धारणा निहित है । पूर्वाचार्यों ने भाषाश्लेष में विविध भाषाओं की संघटना की धारणा व्यक्त की थी । प्रस्तुत अलङ्कार की धारणा उक्त अलङ्कार की धारणा से बहुत कुछ मिलती-जुलती है । अन्तर केवल इतना है कि विश्वनाथ ने विभिन्न भाषाओं में एक ही तरह के शब्द से वाक्य की योजना में भाषासम माना है जब कि भाषाश्लेष में एक तरह के शब्द का प्रयोग आवश्यक नहीं, अनेक भाषाओं से एक वाक्यार्थ की निष्पत्ति ही अपेक्षित रहती है । १. रसस्य परिपन्थित्वान्नालङ्कारः प्रहेलिका । उक्तिवैचित्र्यमात्र सा च्युतदंत्ताक्षरादिका ॥ 1 - विश्वनाथ, साहित्यदर्पण, १०, १६ २. मात्रा बिन्दुच्युत के प्रहेलिका कारक क्रियागूढे । प्रश्नोत्तरादि चान्यत्क्रीडामात्रोपयोग मिदम् ॥ - रुद्रट, काव्यालङ्कार, ५,२४ ३. तुलनीय – विश्वनाथ, साहित्यद० १०, ७ तथा दण्डी, काव्यादर्श, ३, २
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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