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________________ २७४ ] अलङ्कारं-धारणा : विकास और विश्लेषण तथा 'दश रूपक' के आधार पर किया है । अलङ्कार के क्षेत्र में भी विश्वनाथ का विशेष मौलिक योगदान नहीं । इसका एक कारण तो यह है कि उनके पूर्ववर्ती आचार्यों की रचनाओं में अलङ्कार - विषयक इतनी उद्भावनाएँ हो चुकी थीं कि उनसे अधिक नूतन उद्भावनाओं की न तो आवश्यकता ही शेष थी और न उसके लिए विशेष अवकाश ही था । दूसरा कारण यह था कि विश्वनाथ रसवादी आचार्य थे और रस-ध्वनिवादी आचार्यों की तरह वे काव्य में रस आदि की अपेक्षा अलङ्कार का गौण महत्त्व मानते थे । अतः, अलङ्कार के क्षेत्र में विशेष ऊहापोह नहीं कर पूर्ववर्ती आचार्यों के बहुमान्य सिद्धान्त को ही परिष्कृत शैली में प्रस्तुत करना उनको अभीष्ट होगा । अस्तु, प्रस्तुत सन्दर्भ में साहित्यदर्पणकार की अलङ्कार - परिभाषाओं की परीक्षा कर पूर्वाचार्यों के अलङ्कार - लक्षण से उनके सम्बन्ध का दिग्दर्शन इन पंक्तियों के लेखक को अभिप्र ेत है । विश्वनाथ ने 'साहित्य दर्पण' में निम्नलिखित शब्दार्थालङ्कारों के स्वरूप निरूपण किया है शब्दालङ्कार : - (१) पुनरुक्तवदाभास, (२) अनुप्रास ( छेक, वृत्ति, श्रुति अन्त्य तथा लाट), (३) यमक, (४) वक्रोक्ति, (५) भाषासम, ( ६ ) श्लेष तथा ( ७ ) चित्र । अर्थालङ्कार : - ( १ ) उपमा, (२) अनन्वय, (३) उपमेयोपमा, (४) स्मरण, (५) रूपक, (६) परिणाम, (७) सन्देह, ( 5 ) भ्रान्तिमान्, ( ६ ) उल्लेख, (१०) अपह्नति, (११) निश्चय, (१२) उत्प्रेक्षा, (१३) अतिशयोक्ति, (१४) तुल्ययोगिता, (१५) दीपक, (१६) प्रतिवस्तूपमा, (१७) दृष्टान्त, (१८) निदर्शना, (१६) व्यतिरेक, ( २० ) सहोक्ति, (२१) विनोक्ति, (२२) समासोक्ति, (२३) परिकर, (२४) श्लेष, (२५) अप्रस्तुत - प्रशंसा, (२६) व्याजस्तुति (२७) पर्य्यायोक्त, ( २८ ) अर्थान्तरन्यास, (२६) काव्यलिङ्ग, (३०) अनुमान, (३१) हेतु, (३२) अनुकूल, (३३) आक्षेप, (३४) विभावना, (३५) विशेषोक्ति, (३६) विरोध, (३७) असङ्गति, (३८) विषम, ( ३६ ) सम, (४०) विचित्र, ( ४१ ) अधिक, (४२) अन्योन्य, (४३) विशेष, (४४) व्याघात, (४५) कारणमाला, (४६) मालादापक, (४७) एकावली, (४८) सार, (४६) यथासंख्य, (५०) पर्याय, (५१) परिवृत्ति, (५२) परिसंख्या, (५३) उत्तर, ( ५४ ) अर्थावृत्ति, (५५) विकल्प, (५६) समुच्चय, (५७) समाधि, (५८) प्रत्यनीक, (५६) प्रतीप, (६०) मीलित, (६१) सामान्य, (६२) तद्गुण,
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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