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________________ अलङ्कार-धारणा का विकास [ २७३ अङ्गी के फलवत्त्व तथा अन्य के अफलवत्त्व-वर्णन में अङ्ग अलङ्कार माना गया है। अनङ्ग अङ्ग का विपरीत-धर्मा है। अप्रत्यनीक के स्वरूप की कल्पना प्रत्यनीक के वैपरीत्य के आधार पर की गयी जान पड़ती है। दुष्कर कार्य की सिद्धि के लिए अभ्यास का वर्णन अभ्यास अलङ्कार का स्वभाव माना गया है। कार्यारम्भ होते ही उसकी सिद्धि का वर्णन अभीष्ट की प्रकृति है। अनेक का निर्देश होने पर एक में तात्पर्येच्छा तात्पर्य अलङ्कार है ।' तत्सदृशाकार तथा प्रतिबन्ध का स्वरूप स्पष्ट नहीं । ___ इन नवोद्भावित अलङ्कारों में से एक भी अलङ्कार-शास्त्र में स्वतन्त्र अलङ्कार के रूप में स्वीकृति नहीं पा सका । कारण स्पष्ट है। अङ्ग में सौन्दर्य नहीं। अनङ्ग उसीका विपरीत-धर्मा है। अप्रत्यनीक प्रत्यनोक के वैपरीत्य के आधार पर कल्पित है । अभ्यास, अभीष्ट आदि सौन्दर्याभाव के कारण अलङ्कार नहीं। 'अलङ्कारोदाहरण' की पाण्डुलिपि के आधार पर रामचन्द्र द्विवेदी ने सम्भव तथा संस्कार नामक दो अलङ्कारों का उल्लेख किया है। संस्कार शोभाकर की भ्रान्ति के समान है। सम्भव के स्वरूप की कल्पना पहले ही हो चुकी थी। स्पष्टतः, 'अलङ्कारोदाहरण' में किसी महत्त्वपूर्ण अलङ्कार की उद्भावना नहीं हुई। विश्वनाथ विश्वनाथ का 'साहित्य-दर्पण' संस्कृत काव्य-शास्त्र के विद्यार्थियों का बहुत ही प्रिय ग्रन्थ सिद्ध हुआ है । साहित्यशास्त्र के विभिन्न अङ्गों का सरल-सुबोध शैली में प्रतिपादन ही 'साहित्य-दर्पण' की लोकप्रियता का रहस्य है। दृश्य तथा श्रव्य काव्य के अङ्गोपाङ्गों का विवेचन विश्वनाथ ने अपने ग्रन्थ में किया है। उनकी ख्याति का कारण मुख्यतः शैली की प्राञ्जलता, विवेचन की विशदता तथा विषय. की व्यापकता है-तत्त्व-चिन्तन की मौलिकता नहीं। उन्होंने दृश्य-काव्य के अङ्गों का निरूपण 'नाट्यशास्त्र' १. उद्धृत, रामचन्द्र द्विवेदी, अलं० सर्वस्व-मी०, पृ० ५०-५३ २. वही, पृ० ५४ ३. द्रष्टव्य-भोज, सरस्वती-कण्ठाभरण, ३, २५ १८
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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