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________________ २६४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण गुणों की एकता का आभास मिलता है। इस लाक्षणिक प्रयोग पर आधृत सार का भी समावेश मम्मट आदि के सामान्य सार-लक्षण में सम्भव है। अतः, उदारसार की पृथक् सत्ता की कल्पना को जयदेव का कल्पना-विलासमात्र माना जा सकता है। यथासंख्य तथा पर्याय अलङ्कारों के स्वभाव के सम्बन्ध में जयदेव अपने पूर्ववर्ती मम्मट आदि आचार्यों की धारणा से पूर्णतः सहमत हैं। परिवृत्ति के लक्षण में उन्होंने मम्मट की परिवृत्ति का केवल असम में परिवर्तन रूप स्वीकार किया है। परिसंख्या के विषय में भी वे मम्मट आदि से एकमत हैं। विकल्प अलङ्कार की धारणा जयदेव ने आचार्य रुय्यक से ली है। उनका समुच्चय आचार्य मम्मट के द्वितीय समुच्चय के समान है। समाधि तथा प्रत्यनीक के लक्षण की कल्पना उन्होंने मम्मट आदि की तद्विषयक धारणा के आधार पर की है। हम देख चुके हैं कि 'चन्द्रालोक' में उल्लिखित प्रतीप अलङ्कार का लक्षण पूर्ववर्ती आचार्यों के प्रतीप-लक्षण से अभिन्न है। तद्गुण, अतद्गुण तथा प्रश्नोत्तर के स्वरूप की कल्पना जयदेव ने मम्मट आदि पूर्ववर्ती आचार्यों की तद्विषयक धारणा के अनुरूप की है। मम्मट के उत्तर को ही 'चन्द्रालोक' में प्रश्नोत्तर कहा गया है। पिहित अलङ्कार के स्वरूप की कल्पना जयदेव ने कुछ नवीन रूप में की है। उनके पूर्व आचार्य रुद्रट पिहित का स्वरूप-निरूपण कर चुके थे; पर उन्होंने रुद्रट की पिहित-धारणा को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने पिहित के लक्षण में कहा है कि जहाँ दूसरे के वृत्तान्त को जानने वाला विशेष प्रकार की चेष्टा करता हो, वहाँ उक्त अलङ्कार होता है । ' इस प्रकार जयदेव ने पिहित का स्वभाव मम्मट आदि के सूक्ष्म अलङ्कार के स्वभाव के समान बना दिया है। मम्मट ने आकृति या इङ्गित से मनोभाव के प्रकटीकरण को सूक्ष्म कहा था।२ जयदेव ने रुद्रट से पिहित की संज्ञा लेकर मम्मट के सूक्ष्म की प्रकृति के आधार पर उसके रूप को कल्पना कर ली। उद्योतकार इसे मम्मट आदि के सूक्ष्म से स्वतन्त्र नहीं मानते । १. पिहितं परवृत्तान्तज्ञातुरन्यस्य चेष्टितम् । -जयदेव, चन्द्रालोक, ५,१०६ २. द्रष्टव्य-मम्मट, काव्यप्रकाश, १०,११२ पृ० २८१ ३. उद्योतकारास्तु-सूक्ष्मालङ्कारान्तर्भूतत्वान्न पिहितालङ्कारः पृथगलङ्कार इत्याहुः। कुवलयानन्द अलङ्कारचन्द्रिका टीकापृ० १६८
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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