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________________ अलङ्कार-धारणा का विकास [ २६५ व्याजोक्ति, वक्रोक्ति, स्वभावोक्ति, भाविक तथा उदात्त अलङ्कारों के लक्षण भी जयदेव ने पूर्ववर्ती आचार्यों की मान्यता का अनुसरण करते हुए ही 'दिये हैं । वक्रोक्ति की गणना उन्होंने अर्थालङ्कारों की पंक्ति में की है । मम्मट आदि आचार्य उसे शब्दालङ्कार मानते थे । वस्तुतः वक्रोक्ति में पर्याय'परिवर्तन नहीं किया जा सकता । अतः वह शब्दालङ्कार ही है । उसके स्वरूप के सम्बन्ध में जयदेव मम्मट आदि से सहमत हैं । भाविक के साथ जयदेव ने एक भाविकच्छवि अलङ्कार का भी विवेचन किया है । इसमें उन्होंने देश से तथा अपने से दूरवर्ती पदार्थ के साक्षात्कार पर बल दिया है । ' भाविक के स्वरूप में ही इसका अन्तर्भाव सम्भव है । इसके स्वतन्त्र अस्तित्व की कल्पना आवश्यक नहीं । स्पष्ट है कि पूर्व - प्रचलित जितने अलङ्कारों के नाम जयदेव ने स्वीकार किये हैं, प्रायः उनके रूप की कल्पना भी प्राचीन आचार्यों के मतानुसार ही की है। कुछ अलङ्कारों के प्राचीन लक्षण को अंशतः स्वीकार कर उन्होंने अवशिष्ट लक्षण का उपयोग दूसरे अलङ्कार की स्वरूप- कल्पना में कर लिया है । उदाहरणार्थ - प्रतीप के सम्बन्ध में पूर्वाचार्यों के मन्तव्य का अवलम्ब लेकर प्रतीप तथा प्रतीपोपमा की पृथक्-पृथक् कल्पना कर ली गयी है । कुछ अलङ्कार के प्राचीन स्वरूप को उन्होंने अस्वीकार भी किया है; पर उसके सर्वथा नवीन रूप की कल्पना नहीं कर उन्होंने प्राचीन आचार्यों के किसी अन्य अलङ्कार के स्वरूप के आधार पर उसकी स्वरूप-कल्पना कर ली है । पिहित के रुद्रट - प्रदत्त लक्षण को अस्वीकार कर मम्मट आदि के सूक्ष्म के स्वरूप के आधार पर पिहित की स्वरूप - कल्पना इस कथन का प्रमाण है । उपमा, रूपक, अपह्न ुति आदि के यत्किञ्चित् नवीन भेदों की कल्पना जयदेव ने की है । उनकी कल्पना का आधार प्राचीन आचार्यों के सामान्यतः तत्तदलङ्कार-लक्षण में ही पाया जा सकता है । 'चन्द्रालोक' में नवीन नाम-रूप वाले जिन अलङ्कारों का लक्षण-निरूपण किया गया है, उनके स्रोत का परीक्षण प्रस्तुत सन्दर्भ में वाञ्छनीय है । उक्त १. देशात्मविप्रकृष्टस्य दर्शनं भाविकच्छविः । — जयदेव, चन्द्रालोक, ५, ११४
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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