SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण (५३) परिसंख्या, (५४) विकल्प, (५५) समुच्चय, (५६) कारकदीपक, (५७) समाधि, (५८) प्रत्यनीक, (५९) अर्थापत्ति, (६०) काव्यलिङ्ग, (६१) अर्थान्तरन्यास, (६२) विकस्वर, (६३ प्रौढोक्ति, (६४) सम्भावना, (६५) मिथ्याध्यवसिति, (६६) ललित, (६७) प्रहर्षण, (६८) विषादन, (६९) उल्लास, (७०) अवज्ञा, (७१) अनुज्ञा, (७२) लेश, (७३) मुद्रा, (७४) रत्नावली, (७२) तद्गुण, (७६) पूर्वरूप, (७७) अतद्गुण, (७८) अनुगुण, (७६) मीलित, (८०) सामान्य, (८१) उन्मीलित, (८२) निमीलित, (८३) उत्तर, (८४) सूक्ष्म, (८५) पिहित, (८६) व्याजोक्ति, (८७) गूढोक्ति, (८) विवृतोक्ति, (८९) युक्ति, (९०) लोकोक्ति, (६१) छेकोक्ति, (९२) वक्रोक्ति. (९३) स्वभावोक्ति, (९४) भाविक, (९५) उदात्त, (९६) अत्युक्ति, ( ७) निरुक्ति, (८) प्रतिषेध, (६६) विधि तथा (१००) हेतु । गुजराती प्रिंटिंग प्रेस से प्रकाशित चन्द्रालोक' में पूर्वोक्त अलङ्कारों में से प्रस्तुताङ्कर, व्याजनिन्दा, अल्प, मालादीपक, मिथ्याध्यवसिति, ललित. अनुज्ञा, लेश, मुद्रा, रत्नावली, निमीलित, सूक्ष्म, गूढोक्ति, विवृतोक्ति, युक्ति, लोकोक्ति, निरुक्ति, प्रतिषेध, विधि तथा हेतु अलङ्कारों का उल्लेख नहीं पाया जाता। इसमें अनुमान, विरोध तथा भाविकच्छवि का उल्लेख है जिनकी गणना उक्त अनुक्रमणी में नहीं की गया है। अनुक्रमणी में मीनित के अतिरिक्त निमीलित का नामोल्लेख है। पूर्ववर्ती आचार्यों ने मीलित का ही सोपसर्ग प्रयोग निमीलित किया था । अप्पय्य दीक्षित भी सम्भवतः मीलित से पृथक् निमीलित का अस्तित्व स्वीकार करना नहीं चाहते थे। इसीलिए उक्त अनुक्रमणी पर आधृत - अपनी अलङ्कार-तालिका में उन्होंने निमीलित के स्थान पर विशेषक अलङ्कार का विवेचन किया है। किन्तु, इस अनुपपत्ति से बचने के लिए उन्होंने जो पाठ-भेद किया उससे वे और अधिक उलझन में पड़ गये। विशेष का स्वरूपप्रतिपादन उन्हें दो बार करना पड़ा, जिसे कथमपि समीचीन नहीं माना जा सकता। अस्तु, उपरिलिखित अलङ्कारानुक्रमणिका तथा 'चन्द्रालोक' की उपलब्ध मूल प्रति में जिन अलङ्कारों का उल्लेख मिलता है उनका पूर्वविवेचित ‘अलङ्कारों से सम्बन्ध की दृष्टि से हम परीक्षण करेंगे। ___ 'चन्द्रालोक' में निम्नलिखित आठ शब्दालङ्कारों का विवेचन हुआ है :छेकानुप्रास, वृत्त्यनुप्रास, लाटानुप्रास, स्फुटानुप्रास, अर्थानुप्रास, पुनरुक्तप्रतीकाश, यमक और चित्र । पुनरुक्तप्रतीकाश उद्भट आदि प्राचीन आचार्यों के पुनरुक्तवदाभास का ही अपर पर्याय है। छेक, वृत्ति तथा लाट अनुप्रासों
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy