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अलङ्कार-धारणा का विकास
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है। नीचे उक्त अनुक्रमणी में प्रदत्त अलङ्कार-तालिका प्रस्तुत की जायगी। 'चन्द्रालोक' की अलङ्कार-संख्या के सम्बन्ध में अप्पय्य दीक्षित की मान्यता पर सन्देह करने का कोई कारण नहीं है। उन्होंने जयदेव के अर्थालङ्कारों की संख्या एक सौ मानी है । उन्होंने यह स्पष्टतः स्वीकार किया है कि 'चन्द्रालोक' में जिन अलङ्कारों के लक्षण-उदाहरण दिये गये हैं उनके लक्षण-उदाहरण मैंने वहीं से लिये हैं।' 'कुवलयानन्द' में एक सौ अर्थालङ्कारों के स्वरूप-विवेचन के उपरान्त अप्पय्य दीक्षित ने कहा है कि इतने अलङ्कारों का निरूपण प्राचीन तथा अर्वाचीन आचार्यों के मतानुसार किया गया है । २ स्पष्ट है कि अप्पय्यदीक्षित के एक सौ अर्थालङ्कारों की स्वरूप-मीमांसा का आधार ‘चन्द्रालोक' ही होगा। यदि दूसरे स्रोत से भी 'कुवलयानन्द' में अलङ्कार लिये गये होते तो केवल चन्द्रालोककार के प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन का पक्षपात सम्भवतः अप्पय्य दीक्षित नहीं करते। अतः जयदेव के शब्दार्थालङ्कारों की संख्या एक सौ आठ मानना ही समीचीन जान पड़ता है। कुवलयानन्द में स्वीकृत चन्द्रालोक के अर्थगत अलङ्कारों की अनुक्रमणिका निम्नलिखित है :
(१) उपमा, (२) अनन्वय, (३) उपमेयोपमा, (४) प्रतीप, (५) रूपक, (६) परिणाम, (७) उल्लेख, (८) स्मृति, (६) भ्रान्तिमान्, (१०) सन्देह. (११) अपह्न ति, (१२) उत्प्रेक्षा, (१३) अतिशयोक्ति, (१४) तुल्ययोगिता, (१५) दीपक, (१६) आवृत्तिदीपक, (१७) प्रतिवस्तूपमा, (१८) दृष्टान्त, (१९) निदर्शना, (२०) व्यतिरेक, (२१) सहोक्ति, (२२) विनोक्ति, (२३) समासोक्ति, (२४) परिकर, (२५) परिकराङ्क र, (२६) श्लेष, (२७) अप्रस्तुतप्रशंसा, (२८) प्रस्तुताङ्कर, (२९) पर्यायोक्त, (३०) व्याजस्तुति, (३१) व्याजनिन्दा, (३२) आक्षेप, (३३) विरोधाभास, (३४) विभावना, (३५) विशेषोक्ति, (३६) असम्भव, (३७) असङ्गति, (३८) विषम, (३६) सम, (४०) विचित्र, (४१) अधिक, (४२) अल्प, (४३) अन्योन्य, (४४) विशेष, (४५) व्याघात, (४६) कारणमाला, (४७) एकावली. (४८) मालादीपक, (४९) सार, (५०) यथासंख्य, (५१) पर्याय, (५२) परिवृत्ति, १. येषां चन्द्रलोके दृश्यन्ते लक्ष्यलक्षणश्लोकाः। प्रायस्त एव तेषां ... ... ... ... ... ... ... ||
-अप्पय्य दीक्षित, कुवलयानन्द वृत्ति पृ० २ २. इत्थं शतमलङ्कारा लक्षयित्वा निदर्शिताः।
प्राचामाधुनिकानां च मतान्यालोच्य सर्वतः ॥-वही, १६६