SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण माना गया है । ' रुय्यक आदि के प्रतीप से पृथक् अनादर की सत्ता की कल्पना आवश्यक नहीं जान पड़ती। अादर ___ आदर अलङ्कार में कोई चमत्कार नहीं। शोभाकर ने आदर के लक्षण में कहा है कि जहाँ अधिक गुण वाली वस्तु की प्राप्ति होने पर किसी वस्तु को तुच्छ समझ कर त्याग दिया गया हो, पर उस गुणवान वस्तु के दूर हो जाने पर त्यक्त वस्तु को पुनः स्वीकार कर लिया जाता हो वहाँ आदर अलङ्कार होता है ।२ वस्तु के त्याग और स्वीकार का कारण स्पष्ट होने से इसमें विशेष चमत्कार नहीं। अनुकृति अनुकृति के स्वरूप को लक्षित करते हुए शोभाकार ने कहा है कि जहाँ एक हेतु से किसी वस्तु के रूप-विशेष धारण करने पर दूसरे हेतु से अन्य वस्तु का भी उससे ताद्र प्य वणित हो वहाँ अनुकृति अलङ्कार होता है। इसमें तार प्य का हेतु कथित होता है । 3 ताद्र प्य की धारणा रूपक में व्यक्त की गयी है। हेतु और हेतुमान का वर्णन हेतु का विषय है । अतः रूपक, हेतु आदि प्राचीन अलङ्कारों में ही इसका अन्तर्भाव हो जाता है । प्रत्यूह प्रत्यूह में एक निमित्त से प्राप्त का दूसरे निमित्त से प्रतिबन्ध हो जाता है। प्राप्त एवं प्रतिबद्ध हेतुमान के साथ हेतु-कथन-मात्र में चमत्कार है। अतः हेतु से पृथक् इसकी कल्पना आवश्यक नहीं। प्रत्यादेश प्रत्यादेश की धारणा भी हेतु पर ही आधृत है। इसमें स्थित वस्तु का अन्य हेतु से अन्यथात्व वर्णित होता है। इसमें भी हेतु के अतिरिक्त कोई अन्य चमत्कार नहीं। इस प्रकार हेतु-हेतुमान-कथन-रूप हेतु से स्वतन्त्र अनुकृति, प्रत्यूह तथा प्रत्यादेश की कल्पना अनावश्यक है। १. अप्राप्ताथं तत्त ल्यस्यानादरोऽनादरः।-शोभाकर, अलं० रत्ना०, ७० २. त्यक्तस्वीकार आदरः। वही, ७१ ३. हेत्वन्तरादन्यस्यापि तथात्वमनुकृतिः। वही, ७२ ४. प्राप्तस्य प्रतिबन्धः प्रत्यूहः। वही, ७३ ५. स्थितस्यान्यथापत्तिः प्रत्यादेशः। वही, ७४
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy