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________________ अलङ्कार-धारणा का विकास [ २३३ अवसर अलङ्कार की कल्पना वाग्भट ने आचार्य रुद्रट के 'काव्यालङ्कार' से ली है। रुद्रट के परवर्ती आचार्य मम्मट तथा रुय्यक ने अवसर का अलङ्कारत्व स्वीकार नहीं किया था। वाग्भट का अवसर-विवेचन उन पर रुद्रट के सीधे प्रभाव का परिचायक है। __ वाग्भट के सार तथा प्रश्नोत्तर का स्वरूप पूर्वाचार्यों की मान्यता के अनुरूप कल्पित है। 'वाग्भटालङ्कार' में विवेचित एकावली का स्वरूप मम्मट आदि आचार्यों की एकावली से मिलता-जुलता ही है। दोनों में थोड़ा अन्तर यह है कि जहाँ मम्मट आदि को इस अलङ्कार में यथापूर्व पर का विशेषणत्व अभिप्रेत था, वहाँ वाग्भट को यथापूर्व का पर के प्रति वैशिष्ट्यनिष्ठ होना अभीष्ट है। वाग्भटालङ्कार के एकावली-उदाहरण की परीक्षा से ऐसा लगता है कि वैशिष्ट्यनिष्ठता से उनका अभिप्राय उत्कर्षाधायकता का है। मम्मट ने एकावली के जो उदाहरण दिये हैं, उनमें भी विशेषणभूत पद परवर्ती पद के उत्कर्ष का आधान करते हैं।' सम्भव है, मम्मट के एकावली-उदाहरण को देख कर ही वाग्भट ने एकावली में पर के प्रति पूर्व का वैशिष्ट्यनिष्ठ होने या उत्कर्षाधायक होने की कल्पना कर ली हो। वस्तुतः, मम्मट की एकावली-परिभाषा अधिक व्यापक है। विशेषण-भूत पूर्व-पद परवर्ती पदों का उपकार तो करते ही हैं, वे उनका उत्कर्ष भी प्रतिपादित कर सकते हैं। स्पष्ट है कि वाग्भट के एकावली-लक्षण में मम्मट के लक्षण की अपूर्ण अनुकृति है। वाग्भट की अलङ्कार-धारणा के उक्त परीक्षण से निम्नलिखित तथ्य प्रकाश में आते हैं :(क) 'वाग्भटालङ्कार' में किसी नवीन अलङ्कार की उद्भावना का प्रयास नहीं है। पूर्व-प्रतिपादित अलङ्कारों में से ही कुछ को चुन कर उनका लक्षण-निरूपण किया गया है। शेष अलङ्कारों को या तो असुन्दर मान कर छोड़ दिया गया है या अन्य अलङ्कार में अन्तभूत मान कर ।' किन्तु, उन्होंने विशेष अलङ्कार की असुन्दरता या परान्तभुक्तता सिद्ध करने के लिए कोई युक्ति नहीं दी है। (ख) श्लेष तथा पुनरुक्तवदाभास शब्दालङ्कारों का अस्तित्व अकारण अस्वीकार कर दिया गया है। १. द्रष्टव्य-मम्मट, काव्य-प्रकाश पृ० २८६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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