________________
२३० ]
अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
हेमचन्द्र के द्वारा स्वीकृत निदर्शना, व्याजस्तुति, स्मृति, सम तथा कारणमाला; इन पाँच अलङ्कारों का उल्लेख वाग्भट ने नहीं किया है ।
प्रतिवस्तूपमा, दृष्टान्त, तुल्ययोगिता, विभावना, हेतु, समाहित, यथासंख्य, अवसर, सार, एकावली तथा प्रश्नोत्तर; इन ग्यारह अलङ्कारों का उल्लेख हेमचन्द्र ने नहीं किया है । वाग्भट ने इनका भी विवेचन अपने ग्रन्थ में किया है । प्रस्तुत सन्दर्भ में वाग्भट के अलङ्कारों का पूर्ववर्ती आचार्यों के अलङ्कारों से सम्बन्ध का परीक्षण अभिप्र ेत है ।
अनुप्रास, यमक, चित्र तथा वक्रोक्ति शब्दालङ्कारों का स्वरूप हेमचन्द्र की तरह वाग्भट ने भी मम्मट तथा रुय्यक के ही मतानुसार विवेचित किया है ।
उपमा के सामान्य स्वरूप के सम्बन्ध में वाग्भट मम्मट आदि आचार्यों की मान्यता सहमत हैं । हेमचन्द्र की तरह उन्होंने भी अनन्वय, उपमेयोपमा तथा मालोपमा को उपमा का ही भेद स्वीकार किया है । मालोपमा को उन्होंने अनेकोपमान -मूला उपमा कहा है । उन्होंने अनेक उपमेय-मूला उपमा की भी कल्पना की है ।' आचार्य भरत ने 'नाट्य-शास्त्र' में उपमा के भेदों का निरूपण उपमेय तथा उपमान की संख्या के आधार पर किया था । वे एक उपमेय का एक उपमान से अथवा अनेक उपमान से और अनेक उपमेय का एक अथवा अनेक उपमान से सादृश्य-प्रतिपादन में उपमा के तत्तद्भेद मानते थे । २ वाग्भट की अनेकोपमेय-मूला उपमा-धारगा आचार्य भरत की उक्त धारणा से अभिन्न है ।
उत्प्रेक्षा तथा रूपक अलङ्कारों के स्वरूप का विवेचन वाग्भट मम्मट आदि आचार्यों की मान्यता के अनुरूप ही किया है ।
दीपक के सम्बन्ध में वाग्भट की धारणा भरत, भामह आदि प्राचीन आचार्यों की धारणा से अभिन्न है ।
भामह आदि प्राचीन आचार्यों के मत का अनुसरण करते हुए व ग्भट ने अप्रस्तुत - प्रशंसा का लक्षण अप्रस्तुत अर्थात् उपमान की प्रशंसा या स्तुति को ही माना है । प्राचीन आचार्यों ने स्तुति या प्रशंसा से अभिप्राय केवल वर्णन का माना था । अतः अप्रस्तुत के वर्णन से प्रस्तुत के बोध में वे अप्रस्तुतप्रशंसा अलङ्कार मानते थे । मम्मट आदि ने इसे अधिक स्पष्ट रूप से परिभाषित
१. वाग्भटालङ्कार, ४, ५६
२. एकस्यैकेन सा कार्या ह्यनेकेनाथवा पुनः ।
अनेकस्य तथैकेन बहूनां बहुभिस्तथा ॥ - भरत, नाट्यशास्त्र, १६,४२