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अलङ्कार-धारणा का विकास
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मम्मट से पूर्णतः एकमत हैं। सङ्कर और संसृष्टि के स्थान पर हेमचन्द्र ने केवल सङ्कर का विवेचन किया है। संसृष्टि तथा सन्देह-सङ्कर को इसी . का अङ्ग माना गया है। ___इस विवेचन से स्पष्ट है कि हेमचन्द्र के 'काव्यानुशासन' में अलङ्कारविषयक कोई नवीन उद्भावना नहीं हुई है।
वाग्मट हेमचन्द्र के प्रायः समसामयिक जैन आचार्य वाग्भट (प्रथम) ने पूर्व-प्रचलित अलङ्कारों में से चार शब्दालङ्कारों तथा पैंतीस अर्थालङ्कारों का विवेचन किया है। शब्दगत श्लेष तथा पुनरुक्तवदाभास या पुनरुक्ताभास, जो हेमचन्द्र के काव्यानुशासन में स्वीकृत हैं, 'वाग्भटालङ्कार' में उल्लिखित नहीं हैं। अर्थालङ्कारों की संख्या एवं संज्ञा के सम्बन्ध में भी उन दोनों जैन आचार्यों में मतैक्य नहीं है। हेमचन्द्र ने जहाँ उनतीस अर्थालङ्कारों का उल्लेख किया था, वहाँ वाग्भट ने पैंतीस अलङ्कारों का उल्लेख किया है। 'वाग्भटालङ्कार' में हेमचन्द्र के द्वारा विवेचित सभी अलङ्कार स्वीकृत नहीं हैं । हेमचन्द्र के उनतीस अलङ्कारों में से पाँच का वाग्भट ने नाम्ना भी उल्लेख नहीं किया है। इस प्रकार केवल चौबीस अर्थालङ्कार 'काव्यानुशासन' तथा 'वाग्भटालङ्कार' में सामान्य रूप से उल्लिखित हैं। वाग्भट ने प्राचीन आचार्यों की रचनाओं से ऐसे ग्यारह अर्थालङ्कार ग्रहण किये हैं, जो हेमचन्द्र के द्वारा अगृहीत हैं। ___ 'वाग्भटालङ्कार' में उल्लिखित अर्थालङ्कार निम्नलिखित हैं-(१) उपमा, (२) उत्प्रक्षा, (३) रूपक, (४) दीपक, (५) अप्रस्तुतप्रशंसा, (६) पर्यायोक्ति, (७) अतिशय, (८) आक्षेप, (६) विरोध, (१०) सहोक्ति, (११) समासोक्ति, (१२) जाति, (१३) श्लेष, (१४) व्यतिरेक, (१५) अर्थान्तरन्यास, (१६) संशय, (१७) अपह्नति, (१८) परिवृत्ति, (१६) अनुमान, (२०) भ्रान्तिमान्, (२१) विषम, (२२) समुच्चय, (२३) परिसंख्या, (२४) सङ्कर, (२५) प्रतिवस्तूपमा, (२६) दृष्टान्त, (२७) तुल्ययोगिता, (२८) विभावना, (२६) हेतु, (३०) समाहित, (३१) यथासंख्य, (३२) अवसर, (३३) सार, (३४) एकावली और (३५) प्रश्नोत्तर ।