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________________ २२८ ] अलङ्कार-धारणाः विकास और विश्लेषण हेमचन्द्र साधर्म्य तथा वैधर्म्य के द्वारा केवल विशेष का सामान्य से समर्थन इसका लक्षण मानते हैं। हेमचन्द्र के ससन्देह का स्वरूप मम्मट के ससन्देह के स्वरूप से मिलताजुलता ही है। मम्मट की तरह हेमचन्द्र ने भी इस अलङ्कार के निश्चयगर्भ तथा निश्चयान्त भेद स्वीकार किये हैं । वे भी मम्मट की तरह सन्देह के भेद की उक्ति तथा अनुक्ति; ये दो भेद स्वीकार करते हैं । सन्देह के स्वरूप-निरूपण के सम्बन्ध में इतनी सहमति होने पर भी हेमचन्द्र ने उसके लक्षण में अलङ्कारान्तर की छाया के गर्भीकरण तथा तात्त्विक असन्देह में भी सन्देह की कल्पना की बात अपनी ओर से कही है। निश्चयान्त सन्देह में तो सन्देह का निवारण कवि कर ही देता है। वस्तुतः, सन्देह अलङ्कार में सन्देह तो कविकल्पित ही होता है। मम्मट आदि को भी वक्ता के द्वारा सन्देह-कल्पना मान्य थी। अतः, इसे हेमचन्द्र की नवीन कल्पना नहीं माना जा सकता। रही अलङ्कारान्तर की छाया के गर्भीकरण की बात ! ऐसा लगता है कि सन्देह-सङ्कर की धारणा से, जिसमें अनेक अलङ्कारों में सन्देह होता है, अलङ्कारान्तर की छाया की धारणा ली गयी है। अपह्नति में प्रकृत के अपलाप की धारणा मम्मट आदि आचार्यों से ली गयी है। मम्मट आदि पूर्ववर्ती आचार्यों ने अप्रस्तुत के द्वारा प्रस्तुत के अपलाप में अर्थात् प्रस्तुत के अपलाप और अप्रस्तुत की स्थापना में ही अपह्न ति मानी थी। हेमचन्द्र ने इसे तो स्वीकार किया ही, प्रस्तुत के द्वारा प्रस्तुत के अपलाप को भी अपह नुति का लक्षण मान लिया। इस प्रकार प्राचीन आचार्यों के व्याजोक्ति को अपह्न ति का अङ्ग बना दिया। प्रस्तुत के द्वारा प्रस्तुत के अपलाप का जो उदाहरण 'काव्यानुशासन' में दिया गया है, वह 'काव्यप्रकाश" में दिये गये व्याजोक्ति के उदाहरण से अभिन्न है। हेमचन्द्र ने व्याजोक्ति का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं माना है। परावृत्ति या परिवृत्ति, अनुमान, स्मृति तथा भ्रान्ति की धारणा मम्मट की धारणा से अभिन्न है । हेमचन्द्र ने मम्मट के विषम का केवल एक भेदक्रिया के अभीष्ट फल से विपरीत फल की प्राप्ति-स्वीकार किया है। सम, समुच्चय, परिसंख्या, तथा कारणमाला के स्वरूप के सम्बन्ध में हेमचन्द्र १. विशेषस्य सामान्येन साधर्म्यवैधाभ्यां समर्थनमर्थान्तरन्यासः । हेमचन्द्र, काव्यानुशासन, ६, पृ०३३४
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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