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________________ २२६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण मान्यताओं को मिलाकर चित्र की परिभाषा दी है ।' हेमचन्द्र की शब्दश्लेषधारणा मम्मट की धारणा से भिन्न नहीं । वक्रोक्ति के दो भेद मम्मट ने स्वीकार किये थे : - श्लेष और काकु । हेमचन्द्र ने उनमें से केवल श्लेष - वक्रोक्ति का अलङ्कारत्व स्वीकार किया है। काकु को वे राजशेखर की तरह पाठधर्म मानते हैं, अलङ्कार नहीं । उनकी श्लेष-वक्रोक्ति का स्वरूप मम्मट की श्लेष - वक्रोक्ति से अभिन्न है । हेमचन्द्र ने मम्मट के पुनरुक्तवदाभास को पुनरुक्ताभास कहा है । उसके लक्षण निरूपण में वे मम्मट से पूर्णतः सहमत हैं । स्पष्ट है कि हेमचन्द्र की शब्दालङ्कार-धारणा पर मम्मट की धारणा का पुष्कल प्रभाव है । शब्दगत अलङ्कार के क्षेत्र में हेमचन्द्र ने कोई नूतन उद्भावना नहीं की है । उपमा उपमा-अलङ्कार के सम्बन्ध में प्राचीन धारणा को ही हेमचन्द्र ने स्वीकार किया है । मम्मट की पद्धति पर उन्होंने प्रस्तुत अलङ्कार के भेदोपभेदों का विवेचन किया है। उन्होंने रुद्रट के रशनोपमा - भेद को भी स्वीकार किया है । मालोपमा के साथ उपमेयोपमा तथा अनन्वय को भी हेमचन्द्र ने उपमा का ही भेद माना है । रुद्रट ने भी उभयोपमा या उपमेयोपमा तथा अनन्वय की स्वतन्त्र सत्ता नहीं मान कर उपमा-भेद के रूप में ही उनका विवेचन किया था । मम्मट ने इन अलङ्कारों का स्वतन्त्र अस्तित्व स्वीकार किया है । स्पष्टतः हेमचन्द्र की मान्यता रुद्रट की मान्यता के अधिक निकट है । हेमचन्द्र ने उपमा - लक्षण में साधर्म्य के साथ 'हृद्य' विशेषण का प्रयोग किया है । यह वस्तुतः कोई नवीन स्थापना नहीं है । अलङ्कार मात्र के मूल में हृदयावर्जक होने की भावना निहित है । उत्प्र ेक्षा तथा रूपक के सम्बन्ध में हेमचन्द्र की मान्यता पूर्ववर्ती आचार्यों की मान्यता से अभिन्न है । निदर्शना के लक्षण-निरूपण में हेमचन्द्र ने पूर्ववर्ती आचार्यों के दृष्टान्त, अर्थान्तरन्यास एवं निदर्शना अलङ्कारों की धारणा को मिला-जुला कर खिचड़ी पका दी है । इस प्रकार वे इष्टार्थ की सिद्धि के लिए दृष्टान्त के निर्देश में १. स्वरव्यञ्जनस्थानगत्याकारनियमच्युतगूढ़ा दि चित्रम् । - हेमचन्द्र, काव्यानुशासन ५, पृ० २५७ २. अर्थभेदभिन्नानां भङ्गाभङ्गाभ्यां युगपदुक्ति: श्लेषः - वही, ५, पृ० २७२
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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