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________________ २२४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण (ङ) अलङ्कार प्रस्थान के अनुयायी होने के कारण रुय्यक ने उद्भट आदि की तरह रस, भाव, तदाभास आदि के निबन्ध में रसवत्, प्रय, ऊर्जस्वी आदि अलङ्कार का सद्भाव स्वीकार किया है। हेमचन्द्र जैन आचार्य हेमचन्द्र ने अपने 'काव्यानुशासन' में छह शब्दालङ्कारों तथा उनतीस अर्थालङ्कारों का विवेचन किया है। पूर्वप्रतिपादित अलङ्कारों में से अनेक को अस्वीकार कर उक्त परिमित संख्या को स्वीकार करने में कोई युक्ति नहीं है । हेमचन्द्र के पूर्व अलङ्कारों को संख्या-परिमिति का प्रयास वामन तथा कुन्तक ने भी किया था। उनके उस आयास के पीछे उनका मौलिक दृष्टिकोण स्पष्ट था। केवल उपमामूलक अलङ्कारों का अस्तित्व स्वीकार कर उन्होंने शेष का अलङ्कारत्व अस्वीकार कर दिया था। हेमचन्द्र की अलङ्कार मीमांसा के क्षेत्र में इस प्रकार की कोई नवीन स्थापना या स्वतन्त्र दृष्टि नहीं है । अलङ्कार के सामान्य स्वरूप तथा काव्य में उसके स्थान-निरूपण की दृष्टि से वे आचार्य मम्मट के अनुयायी हैं। मम्मट का 'काव्यप्रकाश' ही हेमचन्द्र के 'काव्यानुशासन' का आकर-ग्रन्थ है। फिर भी मम्मट के बासठ अर्थालङ्कारों में से केवल उनतीस की ही सत्ता हेमचन्द्र को मान्य है। काव्यशास्त्र में नतन सिद्धान्त की स्थापना की दृष्टि से हेमचन्द्र का कोई योगदान नहीं है । पूर्व प्रचलित काव्य-सिद्धान्तों का आकलन ही उनका उद्देश्य रहा है । प्रस्तुत सन्दर्भ में हम उनके द्वारा विवेचित अलङ्कारों के स्वरूप का पूर्ववर्ती आचार्यों के अलङ्कारों से साम्य-वैषम्य की दृष्टि से परीक्षण करेंगे। हेमचन्द्र के 'काव्यानुशासन' में निम्नलिखित अलङ्कारों का लक्षणनिरूपण किया गया है शब्दालङ्कार-(१) अनुप्रास, (२) यमक, (३) चित्र, (४) श्लेष, (५) वक्रोक्ति और (६) पुनरुक्ताभास । अर्थालङ्कार-(१) उपमा, (२) उत्प्रेक्षा, (३) रूपक, (४) निदर्शन, (५) दीपक, (६) अन्योक्ति, (७) पर्यायोक्ति, (८) अतिशयोक्ति, (६) आक्षेप, (१०) विरोध, (११) सहोक्ति, (१२) समासोक्ति, (१३) जाति, (१४) व्याजस्तुति, (१५) श्लेष, (१६) व्यतिरेक, (१७) अर्थान्तरन्यास,
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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