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अलङ्कार-धारणा का विकास
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'कि 'अलङ्कार-सूत्र' में उल्लिखित अर्थापत्ति का नाम रूप प्राचीन है, अलङ्कार के रूप में उसकी स्वीकृति - - मात्र नवीन ।
विकल्प
विकल्प की धारणा भी प्राचीन है; किन्तु अलङ्कार के रूप में उसकी स्वीकृति नवीन । समान बलशाली परस्पर विरोधी पदार्थों की युगपत् प्राप्ति में विकल्प की स्थिति आती है । रुय्यक ने विकल्प का यही स्वरूप स्वीकार किया है । साधारण विकल्प से विकल्प अलङ्कार का कुछ स्वतन्त्र अस्तित्व सिद्ध करने के लिए रुय्यक ने इस अलङ्कार को औपम्य- गर्भ माना है । २ स्पष्टतः, विकल्प की पूर्व निर्धारित मान्यता के साथ उपमा - धारणा के योग से प्रस्तुत अलङ्कार का स्वरूप निर्मित है ।
रुय्यक की अलङ्कार-धारणा के उक्त विवेचन से प्राप्त निष्कर्ष निम्नलिखित हैं
:–
(क) अलङ्कारों की स्वरूप-मीमांसा में रुय्यक बहुलांशतः मम्मट से सहमत हैं ।
(ख) अलङ्कार - विशेष के भेदोपभेदों के अधिकाधिक सरलीकरण का प्रयास रुय्यक ने किया है ।
(ग) अलङ्कारों के लक्षण को सरल सूत्रों में आबद्ध करना रुय्यक की विशेषता है ।
(घ) परिणाम, उल्लेख, विचित्र, अर्थापत्ति तथा विकल्प --- इन पाँच नवीन अलङ्कारों का उल्लेख रुय्यक ने किया है । इनमें से उल्लेख की कल्पना दण्डी के 'हेतुरूपक' के आधार पर की गयी है । अर्थापत्ति तथा विकल्प के सम्बन्ध में पूर्वप्रचलित मान्यता को ही स्वीकार कर रुय्यक ने काव्य के अलङ्कार के रूप में उनकी कल्पना कर ली । परिणाम का स्वरूप अंशतः रूपक के समान होने पर भी अंशत: रुय्यक के द्वारा कल्पित है । उसकी कल्पना का श्रेय – आंशिक ही सही - रुय्यक को अवश्य है । विचित्र रुय्यक की मौलिक उद्भावना है ।
१. तुल्यबलविरोधो विकल्पः । - रुय्यक, अलङ्कार-सूत्र, ६४ २. औपम्यगर्भत्वाच्चात्र चारुत्वम् । - अलङ्कार - सर्वस्व पृ० १९६