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________________ २१८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण ( उत्कर्ष में ) बढ़ा-चढ़ा वणित हो तो अधिक अलङ्कार होता है।' बढ़ा-चढ़ा या अधिक उत्कर्षशाली होने ( अतिरिच्येत ) का अर्थ अधिक होना मान कर मम्मट ने अधिक का यह लक्षण दिया कि यदि महत् आधार से आधेय का महत्तर होना अथवा महत् आधेय से आधार का महत्तर होना ( तत्त्वतः उनके अल्प होने पर भी ) वर्णित हो तो अधिक अलङ्कार होता है।२ रुय्यक ने रुद्रट की अधिक परिभाषा के 'तनीयोऽपि अतिरिच्यते' की स्वमत से व्याख्या कर यह लक्षण दिया कि आश्रय की विपुलता में आश्रित की परिमिति तथा आश्रित की विपुलता में आश्रय की परिमिति के वर्णन से उत्पन्न चारुता में प्रस्तुत अलङ्कार होता है । इस अलङ्कार में आश्रय तथा आश्रित की अननुरूपता रुद्रट, मम्मट तथा रुय्यक को समान रूप से इष्ट है। रसवत्, प्रय, ऊर्जस्वी, समाहित, भावोदय, भावसन्धि तथा भावशबलता अलङ्कारों के जिन स्वरूपों की कल्पना रुय्यक के 'अलङ्कार-सूत्र' में की गयी है, वे नवीन नहीं हैं । भावोदय, भावसन्धि एवं भावशबलता के स्वरूप का विवेचन मम्मट ने रसादि ध्वनि-निरूपण के क्रम में किया था। 'रसादि' पदः से उन्होंने रस के साथ रसाभास, भाव, भावाभास, भावशान्ति, भावोदय, भावसन्धि तथा भावशबलता को ग्रहण किया था। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि जहाँ ये रसादि प्रधान रहते हैं वहाँ वे अलङ्कार्य होते हैं; किन्तु जहाँ वाक्यार्थ की प्रधानता रहती है और रस आदि उसके अङ्ग होकर आते हैं वहाँ व्यङ्ग यार्थ के गौण हो जाने के कारण रस, भाव, रसाभास, भावाभास तथा भावशान्ति आदि का पर्यवसान क्रमशः रसवत्, प्रय, ऊर्जस्वो तथा समाहित आदि अलङ्कार के रूप में होता है। यह ध्यातव्य है कि मम्मट ने १. यत्राधारे सुमहत्याधेयमवस्थितं तनीयोऽपि । अतिरिच्येत कथंचित्तदधिकमपरं परिज्ञेयम् ।। -रुद्रट, काव्यालङ्कार, ६, २८ २. महतोर्यन्महीयांसावाश्रिताश्रययोः क्रमात् । आश्रयाश्रयिणौ स्यातां तनुत्वेऽप्यधिकं तु तत् ॥ -मम्मट, काव्यप्रकाश, १०,१२८ ३. आश्रयाश्रयि गोरनानुरूप्यमधिकम् ।-रुय्यक, काव्यालङ्कार सूत्र ४८ तथा तच्चाननानुरूप्यमाश्रयस्य वैपुल्येऽप्याश्रितस्य परिमितत्वाद् वा आश्रितस्य वैपुल्येऽप्याश्रयस्य परिमितत्वाद् वा स्यात् । -वही वृत्ति, पृ० १६६ ४. द्रष्टव्य-मम्मट, काव्यप्रकाश, ४, ४२ तथा उसकी.वृत्ति, पृ० ३४
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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