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________________ २१४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण दूसरी वस्तु का वर्णन होता है । इसमें एक के अभाव में दूसरे की स्थिति का वर्णन होता है। सामान्य विशेष के विपरीत सामान्य नामक नवीन अलङ्कार की कल्पना मम्मट ने की है। इसमें प्रस्तुत के गुण का अप्रस्तुत के साथ साम्य बताने के लिए ऐकात्म्य का निबन्धन किया जाता है अर्थात् दो वस्तुओं की समता के प्रतिपादन के लिए दोनों की एक-सी प्रतीति का वर्णन होता है । ' दो वस्तुओं के वैशिष्ट्य के लुप्त हो जाने के कारण इसे सामान्य कहा जाता है। अतद्गुण __ अतद्गुण का स्वरूप तद्गुण के वैपरीत्य के रूप में कल्पित है। मम्मट ने रुद्रट की तद्गुण-धारणा को स्वीकार कर उसके विपरीत अतद्गुण व्यपदेश से नवीन अलङ्कार की कल्पना कर ली। उक्त विवेचन से यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि मम्मट ने अधिकतर अलङ्कार-विषयक प्राचीन आचार्यों की मान्यता का ही विवेचन किया है । ____ कुछ अलङ्कारों के नवीन भेदों की भी कल्पना उन्होंने की है; पर उसका आधार प्राचीन आलङ्कारिकों की तत्तदलङ्कार-धारणा ही है। जिन चार नवीन अलङ्कारों की कल्पना मम्मट ने की है, उनका मूल भी पूर्ववर्ती आचार्यों के विभिन्न अलङ्कारों के स्वभाव में देखा जा सकता है। उदाहरणार्थ-मालादीपक के स्वरूप की कल्पना का आधार दीपक तथा माला-धारणा पर आधृत कारणमाला-जैसे अलङ्कार का स्वरूप है। विनोक्ति की कल्पना का आधार सहोक्ति को, सामान्य की कल्पना का आधार विशेष को तथा अतद्गुण की कल्पना का आधार तद्गुण को माना जा सकता है। स्पष्टतः, अलङ्कार के क्षेत्र में नूतन उद्भावना की दृष्टि से मम्मट का महत्त्व अधिक नहीं है। विवेचन को प्रौढ़ता एवं प्राञ्जलता की ही दृष्टि से 'काव्यप्रकाश' के अलङ्कार खण्डों का महत्त्व है। १. प्रस्तुतस्य यदन्येन गुणसाम्यविवक्षया । ऐकात्म्यं बध्यते योगात्तत्सामान्यमिति स्मृतम् ॥ -वही, १०, २०२ पृ० २६३
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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