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अलङ्कार-धारणा का विकास
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अन्यथा सिद्ध कर देता है तो वहाँ व्याघात नामक अलङ्कार होता है । प्रस्तुत व्याघात - परिभाषा मम्मट की स्वतन्त्र उद्भावना है । यह अलङ्कार नाम्ना प्राचीन; किन्तु प्रकृत्या नवीन है ।
मम्मट के 'काव्य-प्रकाश' में जिन चार अलङ्कारों का स्वतन्त्र अस्तित्व स्वीकृत हुआ है, वे हैं— मालादीपक, विनोक्ति, सामान्य और अतद्गुण । अन्तिम तीन अलङ्कार नवीन हैं । इन अलङ्कारों की स्वरूप कल्पना के आधार का अनुसन्धान प्रस्तुत सन्दर्भ में किया जायगा ।
मालादीपक
आचार्य मम्मट ने मालादीपक की स्वतन्त्र सत्ता स्वीकार की है । इसकी परिभाषा में कहा गया है कि जहाँ पूर्व-पूर्व वस्तु उत्तर-उत्तर वस्तु का उपकार करे, वहाँ मालादीपक अलङ्कार होता है । उत्तर-उत्तर वस्तुओं को दीपित करने वाली पूर्ववर्ती वस्तुओं की इसमें माला रहती है । इसलिए इसे मालादीपक कहा गया है । उत्तर-उत्तर वाक्यों का पूर्व - पूर्व वाक्यों की अपेक्षा रखने की कल्पना दण्डी ने मालादीपक में की थी; पर उन्होंने उसकी स्वतन्त्र सत्ता नहीं मान कर उसे दीपक का ही एक भेद माना था । मम्मट ने उसी मान्यता को स्वीकार कर दीपकों की माला की कल्पना प्रस्तुत अलङ्कार में की है । स्पष्ट है कि दण्डी के ही मतानुसार मालादीपक की कल्पना की गयी है । मम्मट ने इसकी गणना दीपक से स्वतन्त्र रूप में की है ।
विनोक्ति
मम्मट के अनुसार जहाँ अन्य वस्तु के विना अन्य वस्तु का ( किसी एक वस्तु के अभाव में दूसरी वस्तु का ) सुन्दर होना या असुन्दर होना वर्णित हो, वहाँ विनोक्ति अलङ्कार होता है । 3 इस अलङ्कार के स्वरूप की कल्पना की प्र ेरणा सहोक्ति के स्वरूप से मिली होगी । सहोक्ति में एक वस्तु के साथ
९. यद्यथा साधितं केनाप्यपरेण तदन्यथा । तथैव यद्विधीयेत स व्याघात इति स्मृतः ॥
- मम्मट, काव्यप्र०, १०, २०६ पृ० २६७ २. मालादीपकमाद्य ं चेद्यथोत्तरगुणावहम् । - वही, १०, १५७ पृ० २५४ ३. विनोक्तिः सा विनाऽन्येन यत्रान्यः सन्न नेतरः ।
- वही, १०, १७१ पृ० २६७