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अलङ्कार-धारणा का विकास
[ २०७ योगिता, (१८) व्यतिरेक, (१६) आक्षेप, (२०) विभावना, (२१) विशेषोक्ति, (२२) यथासंख्य (२३) अर्थान्तरन्यास, (२४) विरोध या विरोधाभास, (२५) स्वभावोक्ति, (२६) व्याजस्तुति, (२७) सहोक्ति, (२८) विनोक्ति, (२६) परिवृत्ति (३०) भाविक (३१) काव्यलिङ्ग (३२) पर्यायोक्त, (३३) उदात, (३४) समुच्चय, (३५) पर्याय, (३६) अनुमान (३७) परिकर, (३८) व्या जोक्ति, (३०) परिसंख्या, (४०) कारणमाला, (४१) अन्योन्य, (४२) उत्तर, (४३) सूक्ष्म, (४४) सार, (४५) असङ्गति, (४६) समाधि, (४७) सम, (४८) विषम, (४६) अधिक, (५०) प्रत्यनीक, (५१) मीलित, (५२) एकावली, (५३) स्मरण, (५४) भ्रान्तिमान, (५५) प्रतीप, (५६) सामान्य, (५७) विशेष, (५८) तद्गुण, (५६) अतद्गुण, (६०) व्याघात, (६१) संसृष्टि और (६२) सङ्कर ।
उक्त अलङ्कारों में से अधिकांश की स्वरूप-मीमांसा मम्मट के पूर्ववर्ती आचार्यों की रचनाओं में हो चुकी थी। भामह, वामन, उद्भट, रुद्रट आदि आचार्यों की तत्तदलङ्कार-धारणा को मम्मट ने स्वीकार कर अपनी कारिकाओं में परिभाषित किया है और उन कारिकाओं की वृत्तियों में अलङ्कारों के स्वरूप का स्पष्टीकरण किया है। शब्दालङ्कारों में श्लेष वक्रोक्ति और चित्र का विवेचन रुद्रट के मतानुसार किया गया है। श्लेष-विवेचन के सन्दर्भ में श्लेष एवं उपमा का साम्य-वैषम्य बताते हुए मम्मट ने रुद्रट का मत उद्धत किया है।' अनुप्रास का स्वरूप-निरूपण भामह, उद्भट, रुद्रट आदि की मान्यता के अनुरूप ही किया गया है। लाटानुप्रास के जिन पाँच भेदों का 'विवेचन उद्भट ने किया था उनका उल्लेख 'काव्यप्रकाश' में भी किया गया है ।२ मम्मट की पुनरुक्तवदाभास-धारणा उद्भट की तद्विषयक धारणा से अभिन्न है। चित्र के विभिन्न रूपों के विवेचन में मम्मट पर रुद्रट की मान्यता का पुष्कल प्रभाव है। आचार्य मम्मट यमक निरूपण में भामह. दण्डी तथा रुद्रट की धारणा से सहमत हैं । स्पष्ट है कि शब्दालङ्कार के क्षेत्र में मम्मट ने किसी नवीन अलङ्कार की उद्भावना नहीं की है।
१. तथाह्य क्त रुद्रटेन-मम्मट, काव्यप्र० ७ पृ० २१३ २. तुलनीय, उद्भट, काव्यालङ्कारसारसंग्रह, १,४ तथा मम्मट काव्यप्रकाश
६,११६ पृ० २०४ ३. उद्भट, काव्यालङ्कारसारसंग्रह १, १ तथा मम्मट, का यपकाश ,
१२२ पृ० २१७