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________________ २०६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण किया गया पर सभी तत्त्वों के सापेक्ष महत्त्व की स्थापना का प्रयास नहीं हुआ। अलङ्कार-सम्प्रदाय में रीति, वक्रोक्ति, रस आदि को गौण स्थान मिला तो रीति, वक्रोक्ति आदि प्रस्थानों में अलङ्कार केवल काव्य-सौन्दर्य के सहायक का स्थान पा सका। दूसरी सीमा तत्त्व-विवेचन की अपरिपक्वता थी। भरत, भामह, दण्डी, वामन, उद्भट, रुद्रट, कुन्तक आदि की दृष्टि काव्यमीमांसा के क्षेत्र में नवीन-तथ्यों की उद्भावना पर ही प्रधान रूप से थी। अतः, किसी विशेष तत्त्व की विशद विवेचना का अवकाश उन्हें नहीं था। काव्यशास्त्रीय चिन्तन में उनके नव-नव उन्मेष की महत्ता की उपेक्षा नहीं की जा सकती, फिर भी इतना अवश्य कहा जा सकता है कि उन विचारकों की उक्त सीमाओं का अतिक्रमण कर एक स्वस्थ एवं समन्वित साहित्य-सिद्धान्त की स्थापना की आवश्यकता शेष थी, जो आचार्य मम्मट के 'काव्य प्रकाश' में पूर्ण हुई। मम्मट के पूर्व इतने काव्य-तत्त्वों की उद्भावना हो चुकी थी कि नवीन तत्त्वों की कल्पना की उतनी आवश्यकता नहीं थी, जितनी उन तत्त्वों के स्वरूप को व्यवस्थित कर काव्य-शरीर में उनके स्थान-निर्धारण की थी। आचार्य मम्मट ने यही किया है। उनका महत्त्व नवीन उद्भावना की अपेक्षा पूर्वप्रचलित काव्य-विषयक मान्यताओं में समन्वय की स्थापना कर उनके सापेक्ष महत्त्व-निर्धारण में तथा विभिन्न काव्याङ्गों के स्वरूप के स्पष्टीकरण में ही अधिक है। प्रस्तुत सन्दर्भ में हम अलङ्कार के क्षेत्र में उनकी मान्यता का मूल्याङ्कन तथा उनके द्वारा उद्भावित नवीन अलङ्कारों के स्रोत का अन्वेषण करेंगे। 'काव्य प्रकाश' में निम्नलिखित अलङ्कारों का विवेचन हुआ हैशब्दालङ्कार (१) वक्रोक्ति, (२) अनुप्रास (छेकानुप्रास, वृत्यनुप्रास तथा लाटानुप्रास के पाँच भेद), (३) यमक, (४) श्लेष, (५) चित्र और (६) पुनरुक्तवदाभास । अर्थालङ्कार (१) उपमा, (२) अनन्वय, (३) उपमेयोपमा, (४) उत्प्रेक्षा, (५) ससन्देह, (६) रूपक, (७) अपह्न ति, (८) श्लेष, (९) समासोक्ति, (१०) निदर्शना, (११) अप्रस्तुतप्रशंसा, (१२) अतिशयोक्ति, (१३) प्रतिवस्तूपमा, (१४) दृष्टान्त, (१५) दीपक, (१६) मालादीपक, (१७) तुल्य
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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