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________________ २०८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण __ अर्थालङ्कारों में उपमा-विषयक प्राचीन धारणा को ही मम्मट ने स्वीकार किया है। उसके भेदोपभेदों का विवेचन उन्होंने उद्भट के मतानुसार किया है। अनन्वय, उपमेयोपमा, उत्प्रेक्षा तथा ससन्देह या संशय का स्वरूपनिरूपण भामह, उद्भट, रुद्रट आदि की धारणा के आधार पर किया गया है। रूपक की सामान्य धारणा उक्त आचार्यों की धारणा से मिलती-जुलती ही है। उसके भेदों का विवेचन उद्भट की पद्धति पर किया गया है। उसका एक परम्परित भेद नवीन है। दण्डी ने रूपक के बीस भेदों का विवेचन कर उसके अनन्त रूपों की सम्भावना स्वीकार की थी। उसी के आधार पर मम्मट की परम्परित रूपक धारणा आधृत है। अपह्नति, श्लेष तथा समासोक्ति की धारणा उक्त आचार्यों से ही ली गयी है। सर्वप्रथम उद्भट ने शब्द और अर्थ के श्लेष का पृथक्-पृथक् विवेचन किया था। रुद्रट ने भी उस शब्दार्थ-श्लेष-विवेक को स्वीकार किया। मम्मट ने भी शब्द और अर्थ के श्लेष का स्वतन्त्र अस्तित्व स्वीकार किया है। मम्मट की निदर्शनाधारणा उद्भट की तद्विषयक धारणा के समान है। अप्रस्तुतप्रशंसा का सामान्य स्वरूप भामह, उद्भट, रुद्रट, आदि आचार्यों की मान्यता के अनुसार ही कल्पित है । रुद्रट ने इसे अन्योक्ति संज्ञा से अभिहित किया था। उद्भट के 'काव्यालङ्कारसारसंग्रह' की 'विवृति' में प्रस्तुत अलङ्कार के पाँच भेदों का उल्लेख है:-किसी वस्तु का वर्णन अभीष्ट होने पर उसके समान अन्य की उक्ति, विशेष कथ्य होने पर सामान्य की उक्ति, सामान्य वर्ण्य होने पर विशेष की उक्ति, कार्य की विवक्षा में कारण की उक्ति तथा कारण की विवक्षा में कार्य की उक्ति । मम्मट ने इन पांचो भेदों को स्वीकार किया है। मम्मट की अतिशयोक्ति-विषयक धारणा उद्भट की धारणा से बहुलांशतः प्रभावित है। भेद में अभेद, पौर्वापर्य-व्यतिक्रम आदि अतिशयोक्ति-लक्षण उद्भट से ही गृहीत हैं। उसके एक भेदउपमेय का उपमान के साथ निगरण पूर्वक अध्यवसान-की कल्पना नवीन जान पड़ती है। अतिशय की धारणा से रूपक (अभेदारोप) की धारणा को मिला कर इस अतिशयोक्ति-भेद की कल्पना की गयी है। इसलिए इसे रूपकातिशयोक्ति भी कहा जाता है। मम्मट के प्रतिवस्तूपमा तथा दृष्टान्त अलङ्कारों का स्वरूप उद्भट के तत्तदलङ्कारों के स्वरूप के समान है। दीपक प्राचीनतम अलङ्कारों में एक है। मम्मट ने प्राचीन आचार्यों की दीपकधारणा को ही स्वीकार किया है। तुल्ययोगिता का लक्षण-निरूपण उद्भट
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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