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________________ १९४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण तत्सदृश अन्य वस्तु की अथवा किसी कार्य के कारण में तद्भिन्न कारण की सम्भावना होती है। सम्भव में सम्भावना का तत्त्व है अवश्य, किन्तु उसका स्वरूप उत्प्रेक्षा का विधान करने वाली 'सम्भावना' से किञ्चित् भिन्न है। भोज ने उस उत्प्रेक्षा का स्वतन्त्र ही अस्तित्व माना है। सम्भव में कारण को देख कर वस्तु की विधि-निषेध आदि के रूप में सम्भावना होती है। पीछे चल कर इसे ही सम्भावना संज्ञा से अभिहित किया गया है । अन्योन्य अन्योन्य अलङ्कार के सामान्य स्वरूप की कल्पना में भोज पर रुद्रट की अन्योन्य-धारणा का प्रभूत प्रभाव है। परिवृत्ति ___भामह. दण्डी आदि प्राचीन आचार्यों की परिवृत्ति-विषयक सामान्य मान्यता को ही भोज ने स्वीकार किया है । निदर्शन भोज ने पूर्व-प्रचलित दो अलङ्कारों-निदर्शन या निदर्शना तथा दृष्टान्त-के स्थान पर एक ही अलङ्कार की सत्ता स्वीकार की है। वे निदर्शन और दृष्टान्त की पृथक्-पृथक् सत्ता स्वीकार नहीं करते। इस एक का ही एकत्र ( सरस्वतीकण्ठाभरण में ) निदर्शन तथा अपरत्र (शृङ्गार प्रकाश में) दृष्टान्त अभिधान है। इसके स्वरूप की कल्पना में भोज ने भामह, दण्डी आदि प्राचीन आचार्यों की मान्यता का ही अनुगमन किया है। भेद प्राचीन आचार्यों के व्यतिरेक अलङ्कार को भोज ने भेद की अतिरिक्त आख्या दी है। उन्होंने स्पष्ट रूप से इसे स्वीकार किया है कि इसे व्यतिरेक भी कहा जाता है।' भोज का भेद-लक्षण दण्डी के व्यतिरेक लक्षण की ही अवतारणा है। १. भोज, सरस्वतीकण्ठाभरण, ३, ११८ २. तुलनीय-भोज, सरस्वतीकण्ठाभरण, ३, ११८ तथा दण्डी, काव्यादर्श २, १८०
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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