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________________ १७० ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण पर कल्पित है। व्याघात और अहेतु अलङ्कारों की स्वरूप-सृष्टि उद्भट की विशेषोक्ति के स्वभाव के अनुरूप की गयी है। वास्तव-वर्ग का पर्याय तथा अतिशय वर्ग का तद्गुण अंशतः नवीन है। प्राचीन व्यपदेश वाले कुछ अलङ्कारों के स्वरूप में भी किञ्चित् रूपगत नवीनता का आधान हुआ है। उदाहरणार्थ-वास्तव-वर्ग के परिवृत्ति एवं सूक्ष्म तथा औपम्य-वर्ग के सहोक्ति और आक्षेप अलङ्कारों का स्वरूप किञ्चित् नवीन है। शब्दगत श्लेष, औपम्यमूलक संशय एवं अर्थान्तरन्यास का सामान्य स्वरूप तो प्राचीन है; किन्तु उनके कुछ नवीन भेदों की कल्पना की गयी है। वास्तव-वर्गगत सहोक्ति तथा व्यतिरेक ; औपम्य-वर्गगत उत्प्रेक्षा तथा अतिशय वर्गगत विभावना-इन अलङ्कारों के एकाधिक रूपों का विवेचन किया गया है, जिनमें से कुछ रूप प्राचीन आचार्यों के मतानुसार विवेचित हैं, कुछ रूप किञ्चित् नवीन । प्राचीन आचार्यों की स्वभावोक्ति के लिए जाति तथा अप्रस्तुतप्रशंसा के लिए अन्योक्ति संज्ञा का प्रयोग किया गया है। उनकी प्रकृति नवीन नहीं, नाममात्र नवीन है। उक्त अलङ्कारों में यत्किञ्चित् नवीनता लाने का प्रयास रुद्रट ने किया है। नवीन भेदों या नवीन अलङ्कार-प्रकारों के स्वरूप की कल्पना की सम्भावना प्राचीन आचार्यों के तत्तदलङ्कारों के सामान्य लक्षण में ही निहित थी। ___ वास्तव-वर्ग के यथासंध्य, दीपक, लेश और हेतु; औपम्य-वर्ग के उपमा, रूपक, अपह्न ति, समासोक्ति तथा दृष्टान्त; अतिशय-वर्ग के उत्प्रेक्षा एवं विरोध तथा श्लेष-वर्ग के श्लेष; इन अलङ्कारों के नामरूप रुद्रट के पूर्ववर्ती आचार्यों के अलङ्कारों से अभिन्न हैं। निष्कर्षतः रुद्रट के वर्गानुक्रम से निम्नलिखित अलङ्कार ही संज्ञा एवं स्वरूप की दृष्टि से उनकी सर्वथा मौलिक उद्भावना है :(क) वास्तव-वर्ग-समुच्चय, विषम, कारणमाला, सार, अन्योन्य, मीलित तथा एकावली। (ख) औपम्य-वर्ग-प्रत्यनीक । (ग) अतिशय-वर्ग-विशेष, अधिक, विषम, असङ्गति और पिहित ।
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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