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१५८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण थी। वामन में सभी अलङ्कारों को उपमा-प्रपञ्च सिद्ध करने का आग्रह था; अतः वामन के समय ही सहोक्ति में उपमा-धारणा मिल गयी। रुद्रट ने दो पदार्थों के एक साथ कथन की सहोक्ति की मूल धारणा में उपमानोपमेय-भाव की धारणा को मिला कर सहोक्ति के उक्त दो, रूपों की कल्पना कर ली है। आक्षेप ___ रुद्रट के अनुसार औपम्यमूलक आक्षेप अलङ्कार में वक्ता किसी वस्तु के लोक-प्रसिद्ध होने अथवा लोक-विरुद्ध होने के कारण वचन का आक्षेप कर उसके स्वरूप की सिद्धि के लिए अन्य वस्तु अर्थात् उपमानभूत वस्तु का कथन करता है।' भामह, दण्डी तथा उद्भट ने आक्षेप में प्रतिषेधोक्ति मात्र को पर्याप्त माना था। वामन ने उसमें उपमानोपमेय भाव को मिला कर उपमान के आक्षेप अर्थात् प्रतिषेध में आक्षेप का सद्भाव माना था। उनके सूत्र का यह अर्थ भी सम्भव है कि जहाँ उपमान का आक्षेप से ज्ञान हो, वहाँ आक्षेप अलङ्कार होता है। इस प्रकार उपमेय से उपमान के गम्य होने में भी वे आक्षेप मानते थे।२ रुद्रट के आक्षेप अलङ्कार में आक्षेप का तत्त्व भामह आदि के आक्षेप-लक्षण के आधार पर ही कल्पित है। वामन की धारणा के अनुसार उन्होंने उपमानोपमेय के तत्त्व को भी आक्षेप में मिलाया। उनकी आक्षेप-परिभाषा में किञ्चित् नवीनता लोक-प्रसिद्धि अथवा लोकविरोध को वचन के आक्षेप और अन्य वस्तु के कथन के हेतु के रूप में कल्पित करने में ही है। शब्दश्लेष ___ रुद्रट ने सर्वप्रथम शब्दगत एवं अर्थगत श्लेष का पृथक्-पृथक् विवेचन किया है। दण्डी के श्लेष-लक्षण में उसके शाब्द एवं आर्थ भेदों की सम्भावना -स्पष्ट थी; किन्तु उन्होंने दोनों का अलग-अलग विवेचन नहीं किया था। 3 १. वस्तु प्रसिद्धमिति यद्विरुद्धमिति वास्य वचनमाक्षिप्य।
अन्यत्तथात्वसिद्ध य यत्र ब्र यात्स आक्षेपः ॥-रुद्रट, काव्यालं० ८,८९ २. उपमानाक्षेपश्चाक्षेपः । उपमानस्याक्षेपः प्रतिषेधः उपमानाक्षेपः ।...... उपमानस्याक्षेपतः प्रतिपत्तिरित्यपि सूत्रार्थः । -वामन, काव्यालं.
४,३,२७ तथा उसकी वृत्ति । ३. दण्डी ने अभिन्नपद तथा भिन्नपद श्लेष-भेदों का निरूपण किया है। कुछ
आचार्य इसी आधार पर शब्दगत श्लेष तथा अर्थगत श्लेष का विभाजन करते हैं।