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अलङ्कार-धारणा का विकास
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रुद्रट ने शब्दगतश्लेष का उल्लेख शब्दालङ्कारों की श्रेणी में किया तथा अर्थगत श्लेष की गणना श्लेष-वर्ग के अलङ्कारों में की। रुद्रट की शब्द-श्लेषधारणा दण्डी आदि की श्लेष-धारणा से मूलतः अभिन्न है; किन्तु उन्होंने उसके कुछ नवीन भेदों की कल्पना कर ली है। उनके अनुसार शब्द-श्लेष के आठ भेद हैं-वर्ण-श्लेष, पद-श्लेष, लिङ्ग-श्लेष, भाषा-श्लेष, प्रकृति-श्लेष, प्रत्यय-श्लेष, विभक्ति-श्लेष तथा वचन-श्लेष। कहने की आवश्यकता नहीं कि शब्द के तत्तद्भेदों के आधार पर श्लेष के उक्त भेदों की कल्पना की गयी है। पूर्ववर्ती आचार्यों के सामान्य श्लेष-लक्षण में भी उक्त भेदों की सम्भावना थी ही । उक्त भेदों की कल्पना रुद्रट को विचारगत नवीनता के श्रेय का अधिकारी सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
संशय
पूर्ववर्ती आचार्यों की तरह रुद्रट ने भी किसी वस्तु में द्रष्टा के द्वकोटिक संशयात्मक ज्ञान को प्रस्तुत अलङ्कार का आधार स्वीकार किया है। यह संशय वस्तुओं के सदृश्यातिशय के कारण हुआ करता है। रुद्रट ने संशय अलङ्कार के तीन भेदों का विवेचन किया है। संशय के सामान्य लक्षण में कहा गया है कि जहाँ प्रतिपत्ता को एक उपमेय में सादृश्य के कारण अनेक विषय का सन्देह हो उस अनिश्चयान्त ज्ञान में संशय नामक अलङ्कार होता है।' संशय के अनिश्चयान्त रूप के अतिरिक्त निश्चयगर्भ एवं निश्चयान्त भेद भी होते हैं। जहां उपमेय या उपमान में वस्तुतः नहीं रहने वाली वस्तु का सद्भाव कहा जाय अथवा इसके विपरीत वहाँ रहने वाली वस्तु की सम्भावना का निषेध किया जाय, वहाँ निश्चयगर्भ और जहाँ अन्ततः निश्चय का कथन हो वहाँ निश्चयान्त संशय होता है ।२ संशय का एक प्रकार वह माना गया है, जिसमें उपमेय-उपमान रूप अनेक विषयों में कर्ता आदि कारकत्व का सन्देह होता है। उपमेय और उपमान के बीच अतिशय सादृश्य के कारण इसमें यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि विशेष क्रिया का कारक उपमेय है या उपमान । यह भी हो सकता है कि क्रिया के एक कारक के ज्ञान के लिए प्रस्तुत और अप्रस्तुत में से एक के तात्त्विक तथा दूसरे के अतात्त्विक होने का
१. वस्तुनि यत्र कस्मिन्ननेकविषयस्तु भवति संदेहः। __ प्रतिपत्त : सादृश्यादनिश्चयः संशयः स इति ।।-रुद्रट, काव्यालं० ८,५९ २. वही, ८, ६१