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________________ अलङ्कार-धारणा का विकास [ १५७ उस विवाद में पड़ना उचित नहीं समझा। अतः, उन्होंने सूक्ष्म का उल्लेख काव्यालङ्कार से नहीं किया। रुद्रट ने दण्डी की सूक्ष्म-परिभाषा को अस्वीकार कर कुछ स्वतन्त्र रूप से उसे परिभाषित किया है। दण्डी ने जहाँ सूक्ष्म में आकृति या सङ्कत से अर्थ का लक्षित होना वाञ्छनीय माना था, वहाँ रुद्रट ने शब्द से उसके अपने अर्थ से सम्बद्ध अन्य अर्थ का—युक्तियुक्त अर्थ का-लक्षित होना अपेक्षित माना है।' रुद्रट का सूक्ष्म लक्षण आपाततः दण्डी के लक्षण से भिन्न है; किन्तु दोनों की सूक्ष्म अलङ्कार-धारणा में यह समानता है कि इसमें अभिप्रेत अर्थ का लक्षित होना दोनों को इष्ट है। दण्डी अभीष्ट अर्थ का द्योतक इङ्गित या आकृति को मानते हैं, रुद्रट शब्द को। सहोक्ति औपम्य-वर्ग की सहोक्ति के दो स्वरूपों का विवेचन रुद्रट के 'काव्यालङ्कार' में हुआ है। उसके एक लक्षण में यह मान्यता व्यक्त की गयी है कि जहाँ अतिशय अधिक क्रिया वाले अप्रस्तुत के साथ प्रस्तुत को समान क्रिया वाला कहा जाता हो वहाँ सहोक्ति अलङ्कार होता है। उसके दूसरे प्रकार का प्रतिपादन करते हुए रुद्रट ने कहा है कि जहाँ एक कर्ता वाली क्रिया अनेक कर्मों में आश्रित हो और वहाँ उपमेयभूत कर्म अपर कर्म अर्थात् उपमान के साथ कथित हो, वहाँ भी सहोक्ति अलङ्कार का सद्भाव माना जाता है। सहोक्ति में उपमानोपमेय भाव की कल्पना में रुद्रट की नवीनता है। भामह तथा उद्भट ने दो वस्तुओं में आश्रित दो क्रियाओं का एक पद से कथन होने में सहोक्ति की सत्ता मानी थी।४ दण्डी ने उसके लिए गुण और कर्म का सहभाव से कथन वाञ्छनीय माना।" वामन ने समकाल दो वस्तुओं की दो क्रियाओं का एक पद से कथन होने में ही सहोक्ति स्वीकार की। इस प्रकार उनकी सहोक्ति-धारणा भामह तथा उद्भट से बहुत भिन्न नहीं १. यत्रायुक्तिमदर्थो गमयति शब्दो निजार्थसम्बद्धम् । अर्थान्तरमुपपत्तिमदिति तत्सञ्जायते सूक्ष्मम् ।।-रुद्रट, काव्यालं०७,६८ २. सा हि सहोक्तिर्यस्यां प्रसिद्धदूराधिकक्रियो योऽर्थः । ___ तस्य समानक्रिय इति कथ्येतान्यः समं तेन ।।-वही, ८,६६ ३. यत्र ककर्तृका स्यादनेककर्माश्रिता क्रिया तत्र । कथ्येतापरसहितं कर्मक सेयमन्या स्यात् ।। वही, ८,१०१ ४. द्रष्टव्य-भामह, काव्यालं० ३,३६ तथा उद्भट काव्यालं० ५,२६ ५. द्रष्टव्य-दण्डी, काव्याद० २,३५१ ६. द्रष्टव्य-वामन, काव्यालं० ४,३,२८
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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