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अलङ्कार-धारणा का विकास
[ १५३ पिहित
वास्तव वर्ग के मीलित अलङ्कार की तरह अतिशय-गर्भ पिहित अलङ्कार में भी एक गुण अपने आश्रय में रहने वाले अन्य अर्थ को आच्छादित कर लेता है। किन्तु, दोनों में स्वभावगत भेद यह है कि जहाँ मीलित में समान चिह्न वाले अर्थान्तर से हर्ष, कोप आदि तिरस्कृत होता है, वहाँ पिहित में किसी वस्तु का तिरस्कार या पिधान असमान गुण वाले पदार्थान्तर से होता है। स्पष्ट है कि मीलित की तरह प्रस्तुत अलङ्कार की उद्भावना का श्रेय भी रुद्रट को ही है।
व्याघात
जहाँ कार्योत्पादन के अवरोधक किसी तत्त्व के नहीं रहने पर भी कारण कार्य को उत्पन्न नहीं करता हुआ चित्रित हो, वहाँ व्याघात अलङ्कार माना गया है ।' उद्भट के विशेषोक्ति अलङ्कार के स्वरूप से प्रस्तुत अलङ्कार का स्वरूप अभिन्न है। उन्होंने कारण की समग्र उपस्थिति में कार्य की अनुत्पत्ति को विशेषोक्ति कहा है। कहीं कार्यानुसत्ति का हेतु कथित तया कहीं अकथित हो सकता है ।२ रुद्रट का व्याघात उद्भर की विशेषोक्ति के अकथितनिमित्ता भेद से अभिन्न है।
अहेतु
___ जहाँ विकार के बलवान हेतु के रहने पर भी किसी वस्तु में स्थैर्य के कारण विकार का उत्पन्न नहीं होना वर्णित हो, वहाँ अहेतु नामक अलङ्कार माना गया है। उद्भट के विशेषोक्ति-लक्षग के व्यापक परिवेश में रुद्रट
१. अन्यैरप्रतिहतमपि कारणमुत्सादनं न कार्यस्य यस्मिन्नभिधीयेत व्याघातः स इति विज्ञेयः ।।-वही, ६,५२ यत्सामग्र येऽपि शक्तीनां फलानुत्पत्तिबन्धनम् । विशेषस्याभिधित्सातस्तद्विशेषोक्तिरिष्यते ॥ दशितेन निमित्त न निमात्तादर्शनेन च । तस्या बन्धो द्विधा लक्ष्ये दृश्यते ललितात्मकः।
-उद्भट, काव्यालं० सार सं०, ५,५ ३. बलवति विकारहेतौ सत्यपि नैवोपगच्छति विकारम् । यस्मिन्नर्थः स्थैर्यान्मन्तन्योऽसावहेतुरिति ।-रुद्रट, काव्यालं०, ६,५४