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अलङ्कार-धारणा का विकास
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विशेष ___रूद्रट के 'काव्यालङ्कार' में विशेष अलङ्कार के तीन प्रकार उल्लिखित हैं। उसके एक भेद में किसी आधेयभूत वस्तु के आधार के वस्तुतः रहने पर भी उसका ( आधेय का ) निराधार की तरह कथन होता है ।' विशेष का दूसरा भेद वहाँ पाया जाता है, जहाँ अनेक आधार में एक वस्तु का एककालावच्छेदेन सद्भाव प्रतिपादित होता है। उसका तीसरा प्रकार वह है, जिसमें कर्ता कोई अन्य कार्य करता हुआ उसी कार्य-काल में कोई अन्य अशक्य कार्य कर देता है।3 रुद्रट के विशेष अलङ्कार का स्वरूप सर्वथा नवीन है।
तद्गुण ___जहां समान गुण वाले ऐसे पदार्थों के, जिनके योग होने पर पृथक्-पृथक् रूप लक्ष्य हो सके, परस्पर सम्बन्ध होने पर उनमें भेद के लक्षित नहीं होने का वर्णन होता है, वहाँ रुद्रट के अनुसार तद्गुण नामक अलङ्कार होता है।४ इसके एक और भेद की कल्पना की गयी है, जिसके स्वरूप के सम्बन्ध में यह मान्यता व्यक्त की गयी है कि इसमें अन्य वस्तु के संसर्ग में आने पर किसी वस्तु का उसी के गुण को ग्रहण कर लेना वर्णित होता है।५ तद्गुण के प्रथम भेद का स्वरूप, जिसमें किसी वस्तु के रूप के लक्ष्य होने पर भी अन्य वस्तु के संसर्ग के कारण अलक्ष्य के रूप में वर्णन होता है, उद्भट की अतिशयोक्ति के 'भेदे नान्यत्व' ( भेद में अभेद ) भेद से मिलता-जुलता है।६ संसर्ग होने पर एक वस्तु के द्वारा अन्य वस्तु के गुण-ग्रहण की धारणा नवीन है। १. किञ्चिदवश्याधेयं यस्मिन्नभिधीयते निराधारम् ।
तादृगुपलभ्यमानं विज्ञेयोऽसौ विशेष इति-रुद्रट, काव्यालं०, ६,५ २. यत्र कमनेकस्मिन्नाधारे वस्तु विद्यमानतया।
युगपदभिधीयतेऽसावत्रान्यः स्याद्विशेष इति ॥ वही, ६, ७ ३. यत्रान्यत्कुर्वाणो युगपत्कार्यान्तरं च कुर्वीत ।
कर्तुमशक्यं कर्ता विज्ञेयोऽसौ विशेषोऽन्यः ।।-वही, ६, ६ ४. यस्मिन्नेकगुणानामर्थानां योगलक्ष्यरूपाणाम् ।
संसग नानात्वं न लक्ष्यते तद्गुणः स इति ।-वही, ६,२२ ५. असमानगुणं यस्मिन्नतिबहलगुणेन वस्तुना वस्तु । ____ संसृष्टं तद्गुणतां धत्त'ऽन्यस्तद्गुणः स इति ॥ वही, ६,२४ ६. द्रष्टव्य-उद्भट, काव्यालं० सारसं०, २,२४