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________________ १५० ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण हेतु माना है। नाट्याचार्य भरत के 'नाट्यशास्त्र' में अनेकत्र स्मृति शब्द का उल्लेख हुआ है; किन्तु अलङ्कार के रूप में नहीं। स्मृति को सञ्चारी भाव के रूप में स्वीकार किया गया है ।२ रूद्रट ने केवल सादृश्य पर आधृत स्मृति को ही अलङ्कार कहा है। स्पष्ट है कि प्राचीनों की स्मृति-विषयक मान्यता को काव्यालङ्कार के क्षेत्र में अवतरित-मात्र करने का श्रेय रुद्रट को दिया जा सकता है, स्मरण के स्वरूप की उद्भावना का नहीं । अतिशय वर्ग के अलङ्कार पूर्व ____ अतिशयमूलक पूर्व अलङ्कार के लक्षण में यह मान्यता प्रकट की गयी है कि जहाँ कारण के पूर्व कार्य का प्रादुर्भाव विवक्षित हो वहाँ पूर्व अलङ्कार होता है। कार्य-कारण के सामान्य पौर्वापर्य का व्यतिक्रम होने से इसे अतिशय गर्भ अलङ्कार माना गया है। इसे अतिशयोक्ति अलङ्कार का ही एक रूप माना जाना चाहिए । भामह, दण्डी, उद्भट आदि की अतिशयोक्तिपरिभाषा में प्रस्तुत अलङ्कार के लक्षण का अन्तर्भाव सहज है । लोक सीमा का उल्लङ्घन होने से यह अतिशयोक्ति ही है। उद्भट ने कार्य-कारण के पौर्वापर्यविपर्यय को अतिशयोक्ति का एक भेद माना था । उद्भट के उक्त अतिशयोक्तिभेद से रुद्रट का पूर्व अभिन्न है। अपने पूर्ववर्ती आलङ्कारिकों के अतिशयोक्तिअलङ्कार-लक्षण के तत्तदङ्गों से अतिशय मूलक स्वतन्त्र संज्ञा वाले विभिन्न अलङ्कारों की कल्पना कर लेने के कारण ही रुद्रट ने अतिशयोक्ति नामक प्रसिद्ध अलङ्कार का पृथक् लक्षण-निरूपण नहीं किया है। पूर्ववर्ती भामह आदि आचार्यों की अतिशयोक्ति की तरह रुद्रट के पूर्व का मूल भी भरत के अतिशय लक्षण में देखा जा सकता है। १. द्रष्टव्य-भरत, ना० शा०, १६, १२४-१२५ २. द्रष्टव्य-वही. ७.५४ ३. यत्रातिप्रबलतया विवक्ष्यते पूर्वमेव जन्यस्य । प्रादुर्भावः पश्चाज्जनकस्य तु तद्भवेत्पूर्वम् ।।-रुद्रट, काव्यालं०, ६,३ ४. कार्यकारणयोत्र पौर्वापर विपर्य यात्।... -उद्भट, काव्यालं० सार सं० २, २५ ५. द्रष्टव्य-भरत ना० शा० १६, १३
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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