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________________ १४४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण अलङ्कार होता है । ' भरत ने हीन वस्तु में उदात्तता के आधान को ओज गुण कहा था । २ ओज गुण-लक्षण के दो पाठ उपलब्ध हैं । जिस लक्षणश्लोक में हीन वस्तु में उदात्तता के आधान को ओज कहा गया है, उसे लक्ष्य कर हेमचन्द्र ने कहा है कि जहाँ कवि अवगीत. या हीन वस्तु में भी शब्दार्थ की सम्पदा से उदात्तत्व की प्रतिष्ठा करते हैं वहाँ भरत के अनुसार ओज गुण होता है । अवसर अलङ्कार के प्रथम भेद का स्वरूप भरत के ओज के उक्त स्वरूप से मिलता-जुलता है । अवसर के दूसरे भेद में सरस वाक्य के उपलक्षण बनाये जाने पर बल दिया गया है । भरत ने सरस तथा दिव्य भाव युक्त वाक्य के प्रयोग पर उदारत्व गुण में विचार किया था । ४ युक्ति लक्षण में उत्कृष्ट वस्तु के साथ अर्थ के सम्बन्ध-साधन पर बल दिया गया है । इससे स्पष्ट है कि भरत के ओज एवं उदारत्व गुणों तथा युक्ति लक्षण के तत्त्वों के योग से रुद्रट के अवसर अलङ्कार की स्वरूप सृष्टि हुई है । मीलित जहाँ हर्ष, क्रोध, भय आदि का अपने समान चिह्न वाले नित्य या आगमापायी पदार्थों से तिरस्कृत होना वर्णित हो वहाँ मीलित अलङ्कार होता है । ६ प्रस्तुत अलङ्कार का स्वरूप सर्वथा नवीन है । एकावली एकावली का स्वरूप भी नवीन है । कारणमाला तथा सार की तरह इसमें भी पदार्थों की शृङ्खला की कल्पना की गयी है । इसमें प्रत्येक परवर्ती पदार्थ अपने पूर्ववर्ती पदार्थ के प्रति विशेषण बन जाता है ।" १. अर्थान्तरमुत्कृष्टं सरसं यदिवोपलक्षणं क्रियते । अर्थस्य तदभिधानप्रसङ्गतो यत्र सोऽवसरः ॥ - रुद्रट, काव्यालं० ७,१०३ २. द्रष्टव्य - भरत, ना० शा०, १६, १०६ । ३. अवगीतस्य हीनस्य वा वस्तुनः शब्दार्थसम्पदा यदुदात्तत्वं निषिञ्चन्ति कवयस्तदोज:' इति भरतः । - हेम०, काव्यानु० व्याख्या, पृ० २३३ ४. द्रष्टव्य — भरत, ना० शा० १६,११० । ५. द्रष्टव्य - वही, १६,३६ । ६. तन्मीलितमिति यस्मिन्समानचिह्न ेन हर्ष कोपादि । अपरेण तिरस्क्रियते नित्येनागन्तुकेनापि ॥ - रुद्रट, काव्यालं० ७,१०६ ७. द्रष्टव्यव -वही, ७, १०६ ।
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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