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________________ १४२ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण पूर्ववर्ती कारणों की शृङ्खला-सी बन जाती है ।' दो पदार्थों के बीच कार्य-कारण"भाव की धारणा भरत ने हेतु लक्षण में व्यक्त की है।२ कारण-कार्य-भाव की धारणा अत्यन्त प्राचीन है। दर्शन में कार्य-कारण-सम्बन्ध विचार का प्रधान विषय रहा है। भरत आदि आचार्य माला की धारणा से भी परिचित थे। नाट्यशास्त्र के प्राप्त एक पाठ में माला नामक लक्षण पर विचार किया गया है, जिसमें अभीष्ट अर्थ की सिद्धि के लिए अनेक प्रयोजन कथित होते हैं । 3 अनेक कारणों के एकत्र सन्निवेश की धारणा के प्राचीन होने पर भी रुद्रट के कारणमाला अलङ्कारकी रूपगत नवीनता यह है कि इसमें प्रत्येक पूर्ववर्ती पदार्थ अपने उत्तरवर्ती का कारण बन जाता है। अतः एक ही वाक्य में जो अपने पूर्ववर्ती का कार्य होता है, वह अपने उत्तरवर्ती का कारण बन जाता है। इस प्रकार कारण-कार्य की शृङ्खला बन जाती है। शृङ्खला-रूप में कार्य-कारण-भाव की उद्भावना का श्रेय रुद्रट को है। अन्योन्य जहाँ दो अभिधेय पदार्थों में हेतुभूत क्रिया से परस्पर विशिष्ट धर्म को परिपुष्ट करने वाला एक कारक-भाव (कर्ता आदि कारकत्व) निष्पन्न होता है वहाँ अन्योन्य अलङ्कार होता है ।४ हेतुभूत समान-क्रिया से समान कारकत्व की धारणा दीपक-धारणा से ली गयी है । यह रुद्रट की नवीन उद्भावना है। उत्तर उत्तर सुन कर जहाँ पूर्ववचन का निश्चय किया जाय अथवा जहाँ प्रश्न से ही उसका उत्तर प्रतीत हो वहाँ उत्तर नामक अलङ्कार माना गया है।५ उत्तर से प्रश्न तथा प्रश्न से उत्तर की प्रतीति के आधार पर प्रस्तुत . १. कारणमाला सेयं यत्र ययापूर्वमेति कारणताम् । अर्थानां पूर्वार्थाद्भवतीदं सर्वमेवेति ॥-रुद्रट, कात्यालं०. ७.८४ २. द्रष्टव्य-भरत ना० शा० १६, अनुबन्ध, १० ३. अभिप्रेतार्थसिद्ध्यर्थ कीर्त्यन्ते यत्र सूरिभिः । प्रयोजनान्यनेकानि सा मालेत्यभिसंज्ञिता॥ -वही, १६ अनुबन्ध, श्लोक सं० २६ ४. यत्र परस्परमेकः कारकभावोऽभिधेययोः क्रियया। ___ संजायेत स्फारिततत्त्व विशेषस्तदन्योन्यम् ।।-रूद्रट, काव्यालं०, ७,६१ ५. उत्तरवचनश्रवणादुन्नयनं यत्र पूर्ववचनानाम् । क्रियते तदुत्तरं स्यात्प्रश्नादप्युत्तरं यत्र ।। वही, ७, ६३
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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