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________________ अलङ्कार-धारणा का विकास [ १४१ एक पाठ में अनेक सूक्ष्म विशेषणों के प्रयोग के स्थल में उदात्त गुण की सत्ता मानी है | हेमचन्द्र ने भरत की उदात्त विषयक मान्यता की व्याख्या करते हुए लिखा है कि जहाँ अनेक सूक्ष्म विशेषणों से युक्त वाक्य प्रयुक्त हों वहाँ भरत उदात्त गुण मानते थे । इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि रुद्रट के परिकर अलङ्कार के साभिप्राय विशेषण युक्त वाक्य की प्रकृति भरत के अनेक - सूक्ष्म विशेषण सहित उदात्त गुण युक्त वाक्य की प्रकृति से बहुत मिलती-जुलती है । भरत ने अक्षरसंघात लक्षण में भी साभिप्राय शब्द प्रयोग पर बल दिया है । भरत के 'नाट्यशास्त्र' में उदात्त गुण तथा अक्षरसङ्घात लक्षण के स्वरूप का निरूपण हो जाने पर परिकर अलङ्कार के स्वतन्त्र स्वरूप की कल्पना भरत के लिए आवश्यक नहीं थी । परिसंख्या जहाँ गुण, क्रिया, जाति रूप वस्तुओं के अनेक आधार में रहने पर भी किसी एक नियत आधार में ही उनका सद्भाव कहा जाय, जिससे अन्यत्र उनका अभाव प्रतीत हो, वहाँ रुद्रट के अनुसार परिसंख्या अलङ्कार होता है । अनेक अधिकरणगत वस्तुओं के एक नियत अधिकरण में निवास का निर्णय वक्ता कहीं अन्य व्यक्तियों के द्वारा पूछे जाने पर करता है, कहीं वह अपृष्टपूर्व ही ऐसा करता है । इन दो स्थितियों के आधार पर परिसंख्या के दो रूप स्वीकृत हैं । 3 परिसंख्या के स्वरूप पर दर्शन - शास्त्र में सूक्ष्म विचार मिलता है । काव्यालङ्कार के क्षेत्र में परिसंख्या की अवतारणा दर्शन हुई है। कारणमाला कारणमाला अन्वर्था संज्ञा है । इसमें प्रत्येक पूर्वस्थित पदार्थ अपने उत्तर--- वर्ती पदार्थ का कारण बनता जाता है । इस प्रकार उत्तरवर्ती कार्य के प्रति १. बहुभिः सूक्ष्मैश्च विशेषः समेतमुदारमिति भरतः । - हेम०, काव्यानु०, व्याख्या, पृष्ठ २३८ २. द्रष्टव्य — भरत, ना० शा ० १६, ६ तथा उस पर अभिनवगुप्त की टीका, पृ० ३०० ३. पृष्टमपृष्टं वा सद्गुणादि यत्कथ्यते क्वचित्तव्यम् । . अन्यत्र तु तदभावः प्रतीयते सेति परिसंख्या ॥ - रुद्रट, काव्यालं० ७,७ε
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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