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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
सातवें विषम-प्रकारों की कल्पना की गयी है । अन्तिम प्रकार-निरूपण में विषम शब्द का अर्थ दारुण माना गया है। विषम अलङ्कार रुद्रट की मौलिक -उद्भावना है।
अनुमान
अनुमान के साध्य तथा साधक या हेतु, इन दो तत्त्वों में से साध्य का "उपन्यास कर पुनः उसके साधक हेतु का उपन्यसन अथवा पहले हेतु का उपन्यास कर साध्य का उपन्यसन; ये अनुमान के दो रूप हैं। जहाँ बलवान कारण को देख वस्तुतः अनुत्पन्न कार्य को भी उत्पन्न अथवा भावी कहा जाय वहाँ भी अनुमान अलङ्कार होता है। ' काव्य में प्रयुक्त होने वाले मनोरम अनुमान को काव्यालङ्कार के रूप में सर्वप्रथम रुद्रट ने ही स्वीकार किया है। हेतु से साध्य-साधन रूप अनुमान की धारणा दर्शन के क्षेत्र में प्राचीन काल से 'प्रचलित थी। न्याय-दर्शन में अनुमान की प्रक्रिया का प्रौढ़ विवेचन सर्वविदित है। आचार्य भरत ने भी प्राप्रि-लक्षण में भाव के अनुमान का उल्लेख किया है ।२ विचार-लक्षण की परिभाषा के प्राप्त पाठ में भरत ने परोक्ष अर्थ के साधक वाक्य के प्रयोग पर बल देकर काव्य में अनुमान की प्रक्रिया को ही स्वीकृति दी थी।3 स्पष्ट है कि रुद्रट के अनुमान अलङ्कार के स्वरूप से प्राचीन आचार्य अपरिचित नहीं थे। काव्यालङ्कार के क्षेत्र में उसकी अवतारणा-मात्र में रुद्रट की मौलिकता है।
परिकर
साभिप्राय विशेषण से द्रव्य, गुण, क्रिया तथा जाति-रूप वस्तु को विशिष्ट करने में परिकर अलङ्कार माना गया है।४ महाकवियों की रचना में प्रयुक्त विशेषण बहुधा साभिप्राय ही हुआ करते हैं। भरत ने उदार-गुण के लक्षण के
१. रुद्रट, काव्यालं० ७,५६-५६ ।। २. द्रष्टव्य-भरत ना० शा० १६, ३२ । ३. पूर्वाशयसमानार्थैरप्रत्यक्षार्थसाधनैः। अनेकोपाधिसंयुक्तो विचारः परिकीर्तितः ॥
-वही, १६ अनुबन्ध श्लोक सं० २५ पृ० ३५७ ४. साभिप्रायः सम्यग्विशेषणैर्वस्तु यद्वि शिष्येत । द्रव्यादिभेदभिन्नं चतुर्विधः परिकर: स इति ।
-रुद्रट, काव्यालङ्कार, ७,७२