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________________ १०२] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण दण्डी की अलङ्कार-संसृष्टि-धारणा के आधार पर उद्भट ने चार प्रकार के सङ्कर की कल्पना कर ली है। भामह ने अनेक अलङ्कारों की संसृष्टि का सङ्कत दिया था। दण्डी ने अलङ्कारों के परस्पर सापेक्ष तथा निरपेक्ष-सद्भाव की कल्पना कर सङ्कर तथा संसृष्टि अलङ्कारों के स्वतन्त्र अस्तित्व की कल्पना का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। उद्भट ने सङ्कर के चार भेदों की कल्पना कर ली। उद्भट के उक्त चार सङ्कर-भेदों से लक्षित होने वाले लक्ष्य तक भामह तथा दण्डी के संसृष्टि-लक्षण की व्याप्ति असन्दिग्ध है। दण्डी के सङ्कीर्णलक्षण के आधार पर सङ्कर तथा संसृष्टि अलङ्कारों के पृथक्-पृथक् स्वरूप के विवेचन में उद्भट का श्रेय है। लाटानुप्रास उद्भट के पूर्ववर्ती आचार्य भामह ने अनुप्रास अलङ्कार का विवेचन करते हुए उसके लाटीय भेद के अस्तित्व का सङ्केत दिया था। उन्होंने उक्त अनुप्रास-भेद का लक्षण नहीं दिया है। एक उदाहरण देकर उसके स्वरूप का परिचय दिया गया है। उदाहरण में 'दृष्टि-दृष्टि' तथा 'चन्द्रश्चन्द्र' का उल्लेख कर स्वर-व्यञ्जन-समुदाय की आवृत्ति में लाटीय अनुप्रास माना गया है। लाट प्रदेश के कवियों का प्रिय होने के कारण ही सम्भवतः इसे लाटीय कहा गया है। उद्भट की लाटानुप्रास-अलङ्कार-धारणा भामह की उक्त धारणा से भिन्न नहीं। उन्होंने ( उद्भट ने ) लाटानुप्रास के लक्षण में कहा है कि जहाँ समान शब्द या पद की आवृत्ति होती हो, उन पदों के स्वरूप एवं अभिधेय अर्थ के अभिन्न होने पर भी उनका तात्पर्यार्थ भिन्न हो, वहाँ लाटानुप्रास अलङ्कार होता है। भामह के लाटीय अनुप्रास के उक्त उदाहरण में यह स्पष्ट है कि दृष्टि और चन्द्र शब्दों की आवृत्ति हुई है । दानों दृष्टि पदों एवं चन्द्रपदों का वाच्य अर्थ अभिन्न, किन्तु तात्पर्यार्थ भिन्न है। निष्कर्षतः लाटीय अनुप्रासविषयक भामह की मान्यता को ही उद्भट ने लक्षण-बद्ध किया है। यह उद्भट की मौलिक उद्भावना नहीं। भामह की धारणा को परिभाषित कर उद्भट १. लाटीयमप्यनुप्रासमिहेच्छन्त्यपरे यथा। भामह, काव्यालं० २, ८ २. दृष्टि दृष्टिसुखां धेहि चन्द्रश्चन्द्रमुखोदितः । -वही, २, ८ ३. स्वरूपार्थाविशेषेऽपि पुनरुक्तिः फलान्तरात् । शब्दानां वा पदानां वा लाटानुप्रास इष्यते ॥ . :-उद्भट, काव्यालं. सार सं० १.८
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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