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________________ अलङ्कार-धारणा का विकास [ १०१ हैं । सन्देह-सङ्कर वहाँ माना जाता है जहाँ एकाधिक अलङ्कार की एकत्र सत्ता जान पड़ती है; किन्तु एककालावच्छेदेन उनकी एकत्र स्थिति सम्भव नही होती, फिर भी उन प्रतिभासित होने वाले अनेक अलङ्कारों में से किसी एक को स्वीकार करने तथा दूसरे को अस्वीकार करने का कोई सबल आधार नहीं मिल पाता।' शब्दार्थवर्त्यलङ्कार में शब्दालङ्कार तथा अर्थालङ्कार परस्पर निरपेक्ष होकर एक वाक्य या एक श्लोक में रहा करते हैं। अलङ्कारों के परस्पर अपेक्षा-रहित सद्भाव की कल्पना दण्डी ने संसृष्टि के एक भेद में की थी। उद्भट ने अनेक शब्दालङ्कारों तथा अनेक अर्थालङ्कारों के एक अधिकरण में परस्पर स्वतन्त्र सद्भाव को संसृष्टि माना है;3 किन्तु शब्दालङ्कार और अर्थालङ्कार के एकत्र अन्योन्यनिरपेक्ष सद्भाव में सङ्कर के प्रस्तुत भेद की कल्पना कर ली है। संसृष्टि से पृथक् सङ्कर के इस भेद की कल्पना आवश्यक नहीं थी। परस्पर निरपेक्ष-भाव से एकत्र अनेक शब्दालङ्कार रहें या अनेक अर्थालङ्कार अथवा कुछ शब्दालङ्कार और कुछ अर्थालङ्कार, अलङ्कार के स्वभाव में कोई अन्तर नहीं पड़ता। परवर्ती रुय्यक आदि आलङ्कारिकों की रचना में सङ्कर का उक्त भेद संसृष्टि में ही अन्तर्भुक्त हो गया है। अलङ्कारों की संसृष्टि ( समान अधिकरण में परस्पर-निरपेक्ष सद्भाव ) तीन रूपों में सम्भव है-(क) अनेक शब्दालङ्कारों की संसृष्टि, (ख) अनेक अर्थालङ्कारों की संसृष्टि तथा (ग) शब्दालङ्कार एवं अर्थालङ्कार की संसृष्टि । ___ एकशब्दाभिधान सङ्कर-भेद की कल्पना कर उद्भट ने यह मान्यता व्यक्त की है कि जहाँ एक शब्द या एक वाक्यांश में अनेक अलङ्कारों का सद्भाव हो वहाँ सङ्कर का उक्त भेद माना जाता है।५ वाक्यगत सङ्कर के आधार पर ही इस वाक्यांशगत सङ्कर की कल्पना की गयी है। स्पष्ट है कि भामह तथा १. अनेकालंक्रियोल्लेखे समं तवृत्यसंभवे । एकस्य च ग्रहे न्यायदोषाभावे च संकरः ॥ -उद्भट, काव्यालङ्कार सार संग्रह, ५, ११ २. शब्दार्थवर्त्यलंकारा वाक्य एकत्र भासिनः । संकरो वा...... -वही, ५, १२ ३. अलङ कृतीनां बहीनां द्वयोर्वापि समाश्रयः । एकत्र निरपेक्षाणां मिथः संसृष्टिरुच्यते ॥-बही, ६, ५ ४. तिलतण्डुलन्यायेन मिश्रत्वे संसृष्टिः।---रुय्यक, अलङ्कार सर्वस्व, ८४ ५. एकवाक्यांशप्रघनाद्वाभिधीयते। उद्भट, काव्यालं. सार सं० ५, १२
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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