SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण निष्कर्षतः दण्डी के अधिकांश अलङ्कारों का स्वरूप भामह के अलङ्कार के -स्वरूप के समान ही है। उनके भेदोपभेद भी बहुलांशतः भामह की धारणा के अनुरूप हैं। दण्डी ने जिन नवीन अलङ्कारों तथा उनके भेदोपभेदों की उद्भावना की है, उनमें से अधिकांश का मूल भामह की अलङ्कार-धारणा में तथा भरत की लक्षण, गुण, अलङ्कार आदि की धारणा में है। कुछ प्राचीन अलङ्कारों के सामान्य स्वरूप के सम्बन्ध में पूर्ववर्ती आचार्यों की मान्यता को ही दण्डी ने स्वीकार किया है; किन्तु उनके नवीन भेदोपभेदों की कल्पना कर ली है। इस भेद-कल्पना में कहीं-कहीं पूर्ववर्ती आचार्यों के अलङ्कार, लक्षण आदि के तत्त्वों का अवलम्ब लिया गया है। अतः उद्गम-स्रोत की दृष्टि से दण्डी के काव्यालङ्कारों के निम्नलिखित वर्ग माने जा सकते हैं (क) पूर्वाचार्यों के अलङ्कारों से अभिन्न-इस वर्ग में यथासंख्य, प्रय, रसवत्, ऊर्जस्वी, पर्यायोक्त, निदर्शन, सहोक्ति आदि अलङ्कार आते हैं। (ख) भामह की अलङ्कार-धारणा के आधार पर कल्पित नवीन अलङ्कारआवृत्ति दण्डी का नवीन अलङ्कार है। यह भामह की दीपक-धारणा के आधार पर कल्पित है। (ग) भरत के अलङ्कारेतर तत्त्वों के आधार पर कल्पित-हेतु, सूक्ष्म एवं लेश भरत के विभिन्न लक्षणों से जीवन-रस ग्रहण कर उत्पन्न हैं। भाविक के स्वरूप-निर्माण में अनेक गुणों, तथा दोषाभाव आदि की धारणा ने योग दिया है। (घ) पूर्ववर्ती आचार्य के द्वारा अस्वीकृत, किन्तु दण्डी के द्वारा स्वीकृतहेतु, सूक्ष्म तथा लेश के अलङ्कारत्व का भामह ने खण्डन किया था; किन्तु दण्डी ने उन्हें वाणी के उत्तम अलङ्कार के रूप में स्वीकार किया है। आशी: का अलङ्कारत्व भी भामह को अभिमत नहीं जान पड़ता; पर दण्डी ने उसका अलङ्कारत्व स्वीकार कर आशीष या शुभाशंसा के ही आधार पर उसके स्वरूप की कल्पना की है। (ङ) अलङ्कार का सामान्य स्वरूप पूर्ववर्ती आचार्यों की धारणा के अनुरूप, किन्तु भेद नवीन-उपमा, रूपक, दीपक, आक्षेप, अर्थान्तरन्यास, अपह्न ति, श्लिष्ट आदि अलङ्कारों के सामान्य स्वरूप के निर्धारण में दण्डी भामह से सहमत हैं ; किन्तु इन अलङ्कारों के अनेक भेदों की कल्पना उन्होंने कर ली है। उन भेदों के स्रोत के अन्वेषण-क्रम में हम देख चुके हैं कि कुछ अलङ्कारों के भेद अन्य अलङ्कारों के तत्त्वों के योग से निर्मित हैं, कुछ भेदों की
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy