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________________ ८० ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण आधिक्य-वर्णन स्पष्टतः स्वीकार किया था,' दण्डी ने वह तत्त्व प्रकारान्तर से प्रतिपादित किया है। उनका कहना है कि जहाँ प्रस्तुत एवं अप्रस्तुत में वाचक शब्द के द्वारा सादृश्य का अभिधान होता हो अथवा वाचक शब्द के अभाव में सादृश्य की प्रतीति होती हो वहाँ वैशिष्ट्य-प्रतिपादनार्थ दोनों में भेद-कथन अर्थात् वैधर्म्य का प्रतिपादन किया जाना व्यतिरेक अलङ्कार है ।२ दण्डी के व्यतिरेक-उदाहरण के परीक्षण से यह स्पष्ट हो जाता है कि उपमान तथा उपमेय में कहीं वैधर्म्य-मात्र का कथन होता है तथा कहीं भेद-कथन से उपमेय का उपमान से आधिक्य सिद्ध होता है। 'काव्यादर्श' के टीकाकार पण्डित नृसिंहदेव शास्त्री ने दण्डी के व्यतिरेक-लक्षण का सारांश उपमान से उपमेय का आधिक्य-वर्णन माना है। अप्रस्तुत से प्रस्तुत के आधिक्य-वर्णन की धारणा भामह की धारणा से अभिन्न है । - भामह ने व्यतिरेक के भेदोपभेद नहीं किये हैं। दण्डी ने उसके अनेक भेदों का विवेचन किया है। उनकी सामान्य व्यतिरेक-परिभाषा में ही उसके दो भेदों का निर्देश है-एक में वाचक शब्द के उक्त होने से सादृश्य वाच्य होता है, दूसरे में सादृश्य प्रतीयमान होता है। इस प्रकार शब्दोपात्त तथा प्रतीयमानसादृश्य; ये व्यतिरेक के दो मुख्य भेद स्वीकार किये गये हैं। 'काव्यादर्श' में निम्नलिखित नौ व्यतिरेक-भेदों का उल्लेख हुआ हैएकव्यतिरेक, उभयव्यतिरेक, सश्लेषव्यतिरेक, साक्षेपव्यतिरेक, सहेतुकव्यतिरेक, प्रतीयमानसादृश्यव्यतिरेक, शाब्दसादृश्यसदृशव्यतिरेक, प्रतीयमानसादृश्यसदृशव्यतिरेक तथा सजातिव्यतिरेक ।४ श्लेषव्यतिरेक तथा आक्षेपव्यतिरेक क्रमशः श्लेष अलङ्कार से अनुप्राणित हैं। सहेतुकव्यतिरेक में हेतु का कथन होता है। हेतूपमा के स्रोत की परीक्षा के क्रम में हेतु तत्त्व की कल्पना के आधार पर विचार किया जा चुका है। शब्दोपात्त धर्म की संख्या की दृष्टि से एकव्यतिरेक तथा उभयव्यतिरेक भेद किये गये हैं। प्रतीयमानसादृश्यव्यतिरेक, शाब्दसादृश्यसदृशव्यतिरेक तथा प्रतीयमान १. द्रष्टव्य-भामह, काव्यालं० २, ७५ २. शब्दोपात्त प्रतीते वा सादृश्ये वस्तुनो'योः । तत्र यद्भदकथनं व्यतिरेकः स कथ्यते ।।-दण्डी, काव्याद० २,१८० ३. 'उपमानादुपमेयस्याधिक्यवर्णनं व्यतिरेक' इति व्यतिरेकस्वरूपसारः । -काव्याद० कुसुम प्र० टीका, पृ० १५८ ४. द्रष्टव्य-दण्डी, काव्याद० २,१८१-६८
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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