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________________ अलङ्कार-धारणा का विकास [ ७६ का निषेध नहीं किया है। उन्होंने यह मान्यता प्रकट की है कि इसी प्रकार अर्थान्तरन्यास के अन्य भेदों की कल्पना की जा सकती है। विशेष का समर्थन करने वाले सामान्य कथन के विश्वजनीन या विशेषगत होने के आधार पर अर्थान्तरन्यास के विश्वव्यापी तथा विशेषस्थ दो भेद माने गये हैं। श्लेष तथा विरोधमूलक अर्थान्तर के न्यास के सद्भाव में श्लेषाविद्ध तथा विरोधवान् अर्थान्तरन्यास-प्रकार स्वीकृत हैं। वणित अर्थ की अयुक्तकारिता, युक्तता, तथा युक्तायुक्तता के आधार पर क्रमशः अयुक्तकारी, युक्तात्मा तथा युक्तायुक्त;—ये तीन अर्थान्तरन्यासभेद कल्पित हैं। विपर्यय-भेद की कल्पना का आधार विपरीत अर्थ का वर्णन है। इस प्रकार दण्डी के इस भेदीकरण में श्लिष्ट तथा विरोध अलङ्कारों के तत्त्वों ने योग दिया है। अर्थ-वर्णन की सर्व-सम्मत विभिन्न प्रक्रियाओं का अवलम्ब लेकर भी अर्थान्तरन्यास के अनेक भेद किये गये हैं। पदार्थ के मुख्य दो विभाग स्वीकृत हैं—विश्वव्यापी तथा विशेष-निष्ठ। इन दो प्रकार के पदार्थों की योजना में अर्थान्तरन्यास के विश्वव्यापी एवं विशेषस्थ भेद माने गये हैं। अयुक्तकारी, युक्तात्मा, युक्तायुक्त तथा विपर्यय भेद उक्ति की विशेष भङ्गी से सम्बद्ध हैं। वस्तु-स्वभाव के विरुद्ध कार्य का वर्णन अयुक्तकारी अर्थान्तरन्यास में होता है, और उसका समर्थन तद्धर्मा अन्य उक्ति से होता है। दूसरे शब्दों में, किसी वस्तु के अयुक्त कार्य को भी विशेष स्थिति में उपपन्न सिद्ध किया जाता है। युक्तात्मा अयुक्तकारी का विपरीत-धर्मा है। उसके स्वरूप की कल्पना अयुक्तकारी के स्वभाव के विपर्यय के आधार पर की गयी है । उक्तायुक्त में उक्त दोनों भेदों की प्रकृति का समवाय है। विपर्ययभेद अयुक्तकारी से मिलता-जुलता है। अन्तर केवल इतना है कि इसमें वस्तुस्वभाव का वैपरीत्य वर्णित होता है; किन्तु अयुक्तकारी में वस्तु के कार्य में उसके स्वभाव से अनुकूलता का अभाव-मात्र रहता है। इस प्रकार धर्म के वैपरीत्य के आधार पर उक्त भेद की कल्पना की गयी है। निष्कर्ष यह कि दण्डी अर्थान्तरन्यास के सामान्य स्वरूप के सम्बन्ध में भामह से सहमत हैं; पर उसके अनेक भेदों की कल्पना का श्रेय दण्डी को है। व्यतिरेक दण्डी की व्यतिरेक-परिभाषा भामह की परिभाषा से किञ्चित् भिन्न होने पर भी तत्त्वतः उससे मिलती-जुलती ही है। भामह ने इसमें उपमान से उपमेय का १. इत्येवमादयो भेदाः प्रयोगेष्वस्य लक्षिताः ।-दण्डी, काव्याद० २, १७१
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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