SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० ] वृत्तमौक्तिक ४. रसिकरञ्जन स्वोपज्ञटीका-सहित :- इस लघुकाव्य का दूसरा नाम 'शृङ्गारवैराग्यशतम्' भी है। इस काव्य की यह विशेषता है कि प्रत्येक पद्य शृङ्गार और वैराग्य दोनों अर्थों का समानरूप से प्रतिपादन करता है अर्थात् इसे द्वयाश्रय काव्य या द्विसन्धान काव्य भी कह सकते हैं। इसमें कुल १३० पद्य हैं । टीका की रचना स्वयं कवि ने वि० सं० १५८०, अयोध्या में की है । ग्रंथ का आद्यंत इस प्रकार है :आदि-शुभारम्भे दम्भे महितमतिडिम्भेङ्गितशतं , मणिस्तम्भे रम्भेक्षणसकुचकुम्भे परिणतम् । अनालम्बे लम्बे पथि पदविलम्बेऽमितसुखं , ___ तमालम्बे स्तम्बेरमवदनमम्बेक्षितमुखम् ॥१॥ ____ xxx एकश्लोककृतौ पुरः स्फुरितया सत्तत्त्वगोष्ठ्या समं , साधूनां सदसि स्फुटां विटकथां को वाच्यवृत्त्या नयेत् । इत्याकर्ण्य जनश्रुतिं वितनुते श्रीरामचन्द्रः कविः , श्लोकानां सह पञ्चविंशतिशतं शृङ्गारवैराग्ययोः ॥३॥ अन्त- प्रख्यातो यः पदार्थैरमृतहरिगजश्रीसखैः श्लोकशाली , स्फीतातिस्फूर्तिरुद्यबुधमुदनुगिरं क्षीरधी रामचन्द्रः । भ्रान्तोऽस्मिन् मन्दरागः फणिपतिगुणभजातुमज्जेत्कथं न, स्यादाधारोऽमुना चेदिह न विरचितः श्रीमता वाङ्मुखेन ॥१३०॥ टीका का उपसंहार शृङ्गारवैराग्यशतं सपञ्चविंशत्ययोध्यानगरे व्यधत्त । अब्दे वियद्वारणबाणचन्द्रे (१५८०), श्रीरामचन्द्रोऽनु च तस्य टीकाम् ।। श्रीरामचन्द्रकविना काव्यमिदं व्यरचि विरतिबीजतया । रसिकानामपि रतये शृङ्गारार्थोऽपि संगृहीतोऽत्र ।। पुष्पिका-इति श्रीलक्ष्मणभट्टसूनु-श्रीरामचन्द्र कविकृतं सटीकं रसिकरञ्जनं नाम शृङ्गारवैराग्यार्थसमानं काव्यं सम्पूर्णम् । यह काव्य वि० सं० १७०३ की लिखित प्रति के आधार से संपादित होकर सन् १९८७ में काव्यमाला के चतुर्थगुच्छक में प्रकाशित हो चुका है, जो कि अब प्रायः अप्राप्य है।
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy