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________________ १८ वृत्तमौक्तिक १५. प्राकृत-पिंगल-इसके प्रणेता के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है किन्तु डॉ० भोलाशंकर व्यास' के अनुसार हरिब्रह्म या हरिहर इसका कर्ता माना जा सकता है और प्राकृतपिंगल का संकलन-काल १४वीं शती का प्रथम चरण मान सकते हैं। इसमें मात्रिक और वणिकवृत्त नाम से दो परिच्छेद हैं । लक्षणों में ग्रन्थकार ने टादिगण, प्रस्तारभेद, नाम, पर्याय एवं मगणादिगणों की पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग किया है। अपभ्रंश और हिन्दी में प्रयुक्त मात्रिक-छंदों के अध्ययन के लिए यह ग्रंथ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । वणिकवृत्तों के लिए संस्कृत-साहित्य में जो स्थान पिंगलकृत छंदःसूत्र का है, मात्रिक-छंदों के लिए वही स्थान प्राकृतपिंगल का है। १६. वाणीभूषण- इसके प्रणेता दामोदर मिश्र दीर्घघोषकुलोत्पन्न मैथिली ब्राह्मण हैं। डॉ० भोलाशंकर व्यास ने प्राकृतपिंगल के संग्राहक हरिहर को पितामह और रविकर को दामोदर का पिता या पितृव्य स्वीकार किया है। विद्वानों के मतानुसार दामोदर मिथिलापति कीतिसिंह के दरबार में थे। अतः दामोदर मिश्र और कविवर विद्यापति सम-सामयिक होने चाहिये । दामोदर मिश्र का समय १४३१ से १४६६ तक माना जाता है। यह ग्रंथ संस्कृत-भाषा में है। इसमें दो परिच्छेद हैं। लक्षणों का गठन पारिभाषिक शब्दावली में है और उदाहरण स्वरचित हैं । वस्तुतः यह ग्रंथ प्राकृतपिंगल का संस्कृत में रूपान्तर मात्र है। १७. छन्दोमञ्जरी-गैरोला ने लेखक का नाम दुर्गादास माना है किन्तु यह भ्रामक है । ग्रन्थ के प्रथम पद्य में ही लेखक ने स्वयं का नाम गंगादास और पिता का नाम गोपालदास वैद्य एवं माता का नाम संतोषदेवी लिखा है। इनका समय १५वीं या १६वीं शताब्दी है । ग्रंथकार ने स्वरचित 'प्रच्युतचरित महाकाव्य' और 'कंसारिशतक' एवं 'दिनेशशतक' का भी उल्लेख किया है ।" छंदो१-देखें, प्राकृतपैगलम् भा० २, पृ० ६-२६ २- , , , , १६-१८ ३-गैरोला : संस्कृत-साहित्य का इतिहास पृ० १६३ ४-देवं प्रणम्य गोपालं वैद्यगोपालदासजः । सन्तोषातनयश्छन्दो गङ्गादासस्तनोत्यदः ॥११ ५-सर्गः षोडशभिः समुज्ज्वलपदैर्नव्यार्थभव्याशय येनाकारि तदच्युतस्य चरितं काव्यं कविप्रीतिदम । कंसारेः शतकं दिनेशशतकद्वन्द्व च तस्यास्त्वसौ, गंगादासकवेः श्रुता कुतुकिना सच्छन्दसा मजरा तुकिनां सच्छन्दसां मञ्जरी ॥६॥६॥
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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