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________________ २४० ] वृत्तमौक्तिक - द्वितीयखण्ड ww जनितवितण्डाजितबल भण्डीरदयित खण्डीकृतनवडिण्डीरभदधिहण्डीगण कलकुण्डी'कृतकलकण्ठीकुल मणिकण्ठीस्फुरितसुकण्ठीप्रिय वरकण्ठी रवरण वीर ! दण्डी कुण्डलिभोगकाण्डनिभयोरुदण्डदोर्दण्डयोः, श्लिष्टश्चण्डिमडम्बरेण निबिडश्रीखण्डपुण्ड्रोज्ज्वलः । निर्द्ध तोद्यदचण्डरश्मिघटया तुण्डश्रिया मामकं कामं मण्डय पुण्डरीकनयन त्वं हन्त हृन्मण्डलम् । कन्दर्पकोदण्ड-दर्पक्रियोद्दण्डदृग्भङ्गिकाण्डीर संजुष्टभाण्डीर धीर! त्वमुपेन्द्र कलिन्दनन्दिनी-तटवृन्दावनगन्धसिन्धुर । जय सुन्दरकान्तिकन्दलः स्फुरदिन्दीवरवृन्दबन्धुभिः । सविरुदं पाण्डूत्पलमिदम् ॥२३॥ २४. अथ इन्दीवरम् जय जय हन्त द्विष दभिहन्तमधुरिमसन्तपितजगदन्तमृदुल वसन्तप्रिय सितदन्त[ स्फुरितदिगन्त प्रसरदुदन्त ] १. गोवि. कुण्ठी। २. पंक्तिद्वयं नास्ति क. प्रतौ।
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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