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________________ भूमिका के साथ समय-समय पर परामर्श एवं सहयोग देकर कृतार्थ किया, उसके लिये मैं इन दोनों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूं। श्री अगरचन्दजी नाहटा के सत्प्रयत्न से अनूप संस्कृत लायब्रेरी, बीकानेर के संरक्षक बीकानेर के महाराजा एवं व्यवस्थापकों ने वृत्तमौक्तिक को प्रतियां सम्पादनार्थ प्रदान की; अतः मैं इन सब का आभारी हूँ। पो० श्री कण्ठमणिशास्त्री कांकरोली, श्री गंगाधरजी द्विवेदी जयपुर, श्री भंवरलालजी नाहटा कलकत्ता, डॉ० श्री नारायणसिंहजी भाटी एम ए, पी.एच.डी., संचालक राजस्थानी शोध संस्थान जोधपुर, श्रीबद्रीप्रसाद पंचोली एम.ए, एवं इण्डिया ऑफिस लायब्रेरी, लन्दन, के व्यवस्थापक आदि ने परामर्श देकर एवं ग्रन्थों की प्राद्यन्त-प्रशस्तियां भेज कर जो सहयोग प्रदान किया है उसके लिये मैं इन सब का उपकृत हूँ। __ मेरे परममित्र श्री लक्ष्मीनारायणजी गोस्वामी का अभिनन्दन में किन शब्दों में करू ! इस ग्रन्थ को शुद्ध एवं श्रेष्ठ बनाने का सारा श्रेय ही इन्हीं को है । साधना प्रेस जोधपुर के संचालक श्री हरिप्रसादजी पारीक भी धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने इसके मुद्रण में पूर्ण सहयोग दिया है। अन्त में, मैं अपने पूज्य गुरुदेव श्रीजिनमणिसागरसूरिजी महाराज का अत्यन्त ही ऋणी हूँ कि जिनकी कृपा और आशीर्वाद से आज में इस ग्रन्थ का सम्पादन करने योग्य बन सका ! श्रीमती सन्तोषकुमारी जैन (मेरी धर्मपत्नी) के सहयोग और प्रेरणा से मैं इस कार्य में संलग्न रहा इसके लिये उसको भी साधुवाद । -म. विनयसागर मानन निवास, जोषपुर. २४.५.६५
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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