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________________ २ ] दाहरणों के कहीं-कहीं पूर्णपद्य न देकर एक-एक चरण मात्र दिये हैं उन्हें पूर्णरूप में टिप्पणी में दे दिये हैं । वृतमक्तिक इन्द्रवज्रा - उपेन्द्रवज्रा - उपजाति, वंशस्थ विला- इन्द्रवंशा-उपजाति और शालिनी-वातोर्मी-उपजाति के ग्रंथकार ने १४-१४ भेद स्वीकार किये हैं किन्तु उनके नाम, लक्षण एवं उदाहरण न होने से मैंने टिप्पणी में इन्द्रवज्रा - उपेन्द्रवज्रा उपजाति और वंशस्थविला- इन्द्रवंशा-उपजाति १४-१४ भेदों के नाम, लक्षण एवं उदाहरण अन्य ग्रंथों के आधार से दिये हैं तथा शालिनी- वातोर्मी उपजाति एवं रथोद्धता-स्वागता-उपजाति के टिप्पणी में लक्षणमात्र दिये हैं क्योंकि अन्य ग्रंथों में इनके नाम और उदाहरण पूर्णरूप में मुझे प्राप्त नहीं हुये । कतिपय स्थलों पर लक्षण स्पष्ट न होने से एवं उदाहरण न होने से मैंने टिप्पणी में लक्षणों को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया हैं, साथ ही अन्य ग्रंथों से प्राप्त उदाहरण भी दिये हैं । गाथादि छंदभेदों के लक्षण और नाम टिप्पणी में देकर इन भेदों को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है । प्रतियों में छन्द के प्रारम्भ में कहीं 'अथ' का प्रयोग है और कहीं नहीं है, कहीं नाम के साथ 'वृत्त' या 'छन्द' का प्रयोग है और कहीं नहीं है तथा छन्द के अंत में केवल नाम ही प्राप्त है, किन्तु मैंने ग्रंथ में एकरूपता रखने के लिये प्रारंभ में 'अथ' और छन्द का नाम और अंत में 'इति' और छन्द नाम का सर्वत्र प्रयोग किया है । इसी प्रकार श्लोक संख्या में भी एकरूपता की दृष्टि से मैंने प्रत्येक प्रकरण की श्लोक संख्या पृथक्-पृथक् दी है । गोविन्दविरुदावली के पाठान्तर मैंने राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ग्रन्थांक २३४८०. पत्र ८. पंक्ति १६. अक्षर ४९. की प्रति से दिये हैं । पाठान्तर, टिप्पणियां और परिशिष्टों द्वारा मैंने यथासम्भव इस ग्रन्थ को श्रेष्ठ बनाने का प्रयास किया है किन्तु में इसमें कहाँ तक सफल हुआ हूँ इसका निर्णय तो एतद्विषय के विद्वान् ही कर सकेंगे । आभार प्रदर्शन राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के सम्मान्य सञ्चालक, मनीषो पद्मश्री मुनि श्री जिनविजयजी पुरातत्त्वाचार्य ने इस ग्रन्थ के सम्पादन का कार्य प्रदान कर मुझे जो साहित्य-साधना का अवसर दिया तथा प्रतिष्ठान के उपसंचालक, सम्माननीय श्री गोपालनारायणजी बहुरा, एम.ए. ने जिस आत्मीयता
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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