________________ 2. अर्धसमम्। विसमे चलणे तिचआरा / अंतपरंतगुरू सगआरा // इह वेअवईअ वरद्धे / दोधअअं जइ बीअचउत्थे // 1 // [विषमे चरणे त्रयश्चतुर्मात्राः / अन्त-पर-अन्तगुरवः सगुरवः // इह वेगवत्याः अपरार्धे / दोधकं यदि द्वितीयचतुर्थयोः // 1 // ] वेअबई अंगारगणस्स [वेगवती अङ्गारगणत्य] / कमलं डसिअंतरलेहिं / पेच्छिअ सच्छसरे भसलेहिं // भरिअं पहिएण पिआए / घोलिरअं व मुहं अलएहिं // 1.1 // [कमलं दंशितं तरलैः / प्रेक्ष्य स्वच्छसरसि भ्रमरैः।। स्मृतं पथिकेन प्रियायाः / घूर्णनशीलमिव मुखमलकैः // 1.1 // ] विसमे जइ तत्थ चउत्थओ। तो परगो उवचित्तअमेअं // 2 // [विषमे यदि तत्र चतुर्थः / त्रिमात्रः परगः उपचित्रकमेतत् // 2 // ] उवचित्तरं अजरामरस्स [ उपचित्रकं अजरामरस्य]। पंडपिक्कफलोहि मअच्छिए / उज्जुअले जुअले उअ कंते // परिमुक्कमले कमले अलिणो / तुज्झ मुहे णअणेव्व भमंते // 2.1. // [वटपक्कफलोष्ठि मृगाक्षि / ऋजुदले युगलौ पश्य कान्ते / परिमुक्तमले कमले अली / तव मुखे नयने इव भ्रमन्तौ // 2.1 // ] दोहअरूअसमक्कमपुवो / लहुचगणो जइ सा चलमज्झा // 3 // [दोधकरूपसमक्रमपूर्वः / लघुश्चतुर्मात्रो यदि सा चलमध्या // 3 // ] चलमज्झा लोणुअस्स [चलमध्या लोणुकस्य]। पेच्छ पिए धवले ससिबिंबे / हरिणेपअंकण पडिहाइ // चन्दणचच्चिअए तुह वच्छे / कसण थणेकमुहं व विहाइ // 3.1 // [प्रेक्षस्व प्रिये धवले शशिबिम्बे / हरिणपदाङ्कनं प्रतिभाति / चन्दनचर्चिते तव वक्षसि / कृष्णं स्तनैकमुखमिव विभाति // 3.1 // ] विसमे चलणे उवचित्तरं / दुअविलंबिअअं जइ सेसए // इअ एरिसलक्खणसंजु / कइअणेहिं कअं हरिणप्पअं // 4 // [विषमे चरणे उपचित्रकम् / द्रुतविलम्बितकं यदि शेषयोः / इतीदृशलक्षणसंयुतम् / कविजनैः कृतं हरिणपदम् // 4 // ] 1 वेगवत्यां. 2 वटपक्वफलौष्ठि. 3 ऋजुदले. 4 हे कान्ते कमले अलिन: भ्रमरस्य युगले पश्य. 5 दोधका. कारस्य यौ समपादौ तत्पूर्वः प्रथमो लघुचगण:. 6 पदाङ्कणं.