________________ स्वयंभूच्छन्दः। [उक्तादिविधिः सीहकीलो जोहअस्स [सिंहक्रीडो योधकस्य] / अणंतो महंतो अकंतोसअंतो अणाई अमाई अराई असोई ___ अजोई असोई अमोई अभोई अकोहो अमोहो अरोहो अखोहो। समुत्तुंगदेहो परिच्छिणणेहो हआसेसैबाहो तिलोईअ णाहो तए मोक्खमग्गो हओसव्वसंगो सुविणाअणेओ तुम देवदेओ महं देउ बोहं समाहिं च णिचं // 83.1 // [अनन्तो महानकान्तोऽसदन्तः अनादिरमायी अरागी अशायी अयोगी अशोकी अमोदी अभोगी अक्रोधोऽमोहोऽरोधोऽक्षोभः / समुत्तुङ्गदेहः परिच्छिन्नस्नेहो हताशेषबाधो त्रिलोक्या नाथस्त्वया मोक्षमार्गो इतसर्वसंगः सुविज्ञातज्ञेयः तव देवदेवो महान्ददातु बोधं समाधिं च नित्यम् // 83.1 // ] सव्वत्तपा लावसाणा णिबझंति जत्तो परिलं पैमोत्तूण सो दंडओ कामबाणोत्ति // 84 // [सर्वत्र पञ्चमात्राः लावसानाः निबध्यन्ते यत्रान्त्यं प्रमुच्य स दण्डकः कामबाण इति // 84 // ] कामबाणो वेआलस्स [ कामबाणो वेतालस्य] / 'णिञ्चं णमो वीअराआ' एवमाइत्ति // 84.1 // [नित्यं नमो वीतराग-एवमादीति // 84.1] पंचंससारभूए बहुलत्थे लक्खलक्खणविसुद्धे / एत्थ सअंभुच्छंदे उत्ताइविही परिसमत्ता // 85 // [पञ्चाशसारभूते बहुलार्थे लक्ष्यलक्षणविशुद्धे / भत्र स्वयम्भूच्छन्दसि उक्तादिविधिः परिसमाप्तः // 85 // ] 1 असतामन्तो यतः. 2 अशायी. 3 अरोधः. 4 स्नेविषयाभावात्. 5 हताशेषबाध:. 6 सुविशातशेयः. 7 अन्तिमं पगणं मुक्त्वा . 8 उक्तादिविधि:.