________________ स्वयंभूच्छन्दः। [ उक्तादिविधिः जइ लहुअपआरा परा पुवला जं जहिच्छाइ बज्झंति सो दंडओ सीहविकंतणामो // 75 // [यदि लघुकपञ्चमात्रात्परे पूर्वलाः यद् यथेच्छं बध्यन्ते स दण्डकः सिंहविक्रान्त नामा // 75] सीहविक्रतो सुद्धसहावस्स [सिंहविक्रान्तः शुद्धस्वभावस्य] / उअ सरअणिसाए रमंतो समं बालगोवीहिं राहाइ कण्हो करे पुंजिअं धूलिपुजं ललिअउहअहत्थेण पच्छाइऊणच्छिवत्ताइँ णीओ सअं जाव संकेअ केलीपएसं। विहलिअकररोहो पलोएइ जात्ता पुरो पुण्णिमाअंदबोंदी णवेंदीवरच्छी किसंगी विहसिअ सविलासं पुणो तीअ सो गाढमालिंगिओ सारं चुंबिओ णिन्भरं रामिओ अ // 75.1 // [पश्य शरन्निशायां रममाणः समं बालगोपीमिः राधया कृष्णः करे पुञ्जितं धूलिपुञ्जम् ललितोभयहस्ताभ्यां प्रच्छाद्याक्षिपत्रे नीतः स्वयं यावत् संकेतकेलीप्रदेशम् / विफलितकररोधः प्रलोकयति यावत्तावत् पुरः पूर्णिमाचन्द्रमुखी नवेन्दीवराक्षी कृशाङ्गी विहस्य सविलासं पुनस्तया स गाढमालिङ्गितः सादरं चुम्बितो निर्भर रमितश्च / / 75.1 // ] लहुगुरुअछआरा दो परा पुन्वला पा जहिच्छाइ बज्झंति सो दंडओ मेहमालाहिहाणो॥७६॥ [लघुगुरुको षण्मात्री द्वौ परे पूर्वलाः पञ्चमात्रा यथेच्छं बध्यन्ते स दण्डको मेघमालाभिधानः / / 76 // ]] मेहमाला तस्सेअ [मेघमाला तस्यैव] / ण रमइ दलसंदे सुंदरे सिंदुवारे ण रुंदारविंदे ण माअंदमंदारएसुं ण लिअइ बउलग्गे णो अ आणंगगोरे पिअंगुडगोच्छे ण पुण्णा ___अणाओहएसुं। ण पिअइ मअरंदं कामभल्लिव्व णो फुल्लिअं मल्लिअं णो असोअं ससो आउलंगो कह र्णडइ पिउच्छा छप्पओ पेच्छ कच्छे भरतो पिअं मालई सा वसंतम्मि कत्तो // 76.1 // 1 करे कृष्णस्यैव. 2 प्रच्छाद्य धूलिभिरेव. 3 यावत् तावत्. 4 रूपे देशी. 5 उपचित. 6 कथं नटति चेष्टते.